अपनों से घिरे रहने की चाह ने मजबूर कर दिया था मुझे फ़ेसबुक पर अपना ग्रुप बनाने के लिए --स्कूल के पुराने बच्चों का एक ग्रुप बना लिया था मैनें..
एक दिन ऐसे ही चेक किया तो आठ-दस बच्चे ऑनलाईन थे,(आजकल जरूरत हो गई है ऑनलाईन रहना :-) )
मैनें सहज ही चेट बॉक्स में लिखा -"स्नेहाशीष"
तुरंत कई बच्चोंने रिप्लाय दिया---- किसी ने "नमस्ते",किसी ने "हेलो", तो कोई "हाय" पर भी आ गया था ।
अचानक मेसेज मिला अंकित का-- "चरण वंदना" , मुझे आप ज्यादा आशीष दें, क्योंकि जिस पर ज्यादा गुस्सा करते हैं उसी से ज्यादा प्यार भी करते हैं।
मैंने जबाब दिया-- मैनें सबको समान दिया है ,कोई भेदभाव नहीं।
बाकि बच्चों के भी उत्तर आने लगे --कोई कह रहा था मैं ज्यादा पुराना स्टूडेंट हूँ,इसलिए मुझे.....
कोई---आप मेरी टीचर नहीं "Mom" हो इसलिए मुझे .....वगैरह..वगैरह...
मैं सबको सिर्फ़ पढ़ रही थी ।
अंकित का जबाब आया ---आपने दस साल पहले मुझे एक चाँटा मारा था,सारे दोस्तों के सामने ,वो आज भी याद है मुझे ..इसलिए मुझे ...
बहुत आश्चर्य हुआ मुझे इस बात का..मैं भी भूल नहीं पाई थी , न वो भूला था।
मैने कहा- अगर यहाँ लिख सको किस बात का तो....."नहींईईई ...बहुत गंदी बात थी वो.....नहीं लिख सकता ...
......और मुझे याद आ रहा था वो अंकित, जिसे उसके पापा और चाचा गाँव से शहर .बेहतर पढ़ाई की सुविधा के लिए होस्टल में लेकर आए थे,तब ५वीं-छठी में रहा होगा वो...
..होस्टल में आए आठ दिन हो चुके थे ,उसका मन नहीं लग रहा था, घर की याद सता रही थी, पेटदर्द का बहाना बनाया था उसने..और रो-रोकर बुरा हाल कर लिया था।
उसके पापा और चाचा को बुलाया गया था उससे मिलने,और उसने जिद्द पकड़ली कि वो यहाँ नहीं पढ़ेगा..किसान पिता समझाते रहे कि -"तुझे बड़ा आदमी बनना है",गाँव में कुछ नहीं है ,खेती में कुछ नहीं मिलेगा।..
एक ही बेटा था वो- तीन भाईयों के परिवार का...बहुत कड़ा मन करके दादा-दादी ने भेजा था उसे शहर ....
इसी बीच अंकित का अगला मेसेज था ---
--" आप अब भी उसी स्कूल में काम कर रही हैं?? छोड़ दिजिए अब .....मैं कमाने लगा हूँ , मेरे साथ रहियेगा...."
एक दिन ऐसे ही चेक किया तो आठ-दस बच्चे ऑनलाईन थे,(आजकल जरूरत हो गई है ऑनलाईन रहना :-) )
मैनें सहज ही चेट बॉक्स में लिखा -"स्नेहाशीष"
तुरंत कई बच्चोंने रिप्लाय दिया---- किसी ने "नमस्ते",किसी ने "हेलो", तो कोई "हाय" पर भी आ गया था ।
अचानक मेसेज मिला अंकित का-- "चरण वंदना" , मुझे आप ज्यादा आशीष दें, क्योंकि जिस पर ज्यादा गुस्सा करते हैं उसी से ज्यादा प्यार भी करते हैं।
मैंने जबाब दिया-- मैनें सबको समान दिया है ,कोई भेदभाव नहीं।
बाकि बच्चों के भी उत्तर आने लगे --कोई कह रहा था मैं ज्यादा पुराना स्टूडेंट हूँ,इसलिए मुझे.....
कोई---आप मेरी टीचर नहीं "Mom" हो इसलिए मुझे .....वगैरह..वगैरह...
मैं सबको सिर्फ़ पढ़ रही थी ।
अंकित का जबाब आया ---आपने दस साल पहले मुझे एक चाँटा मारा था,सारे दोस्तों के सामने ,वो आज भी याद है मुझे ..इसलिए मुझे ...
बहुत आश्चर्य हुआ मुझे इस बात का..मैं भी भूल नहीं पाई थी , न वो भूला था।
मैने कहा- अगर यहाँ लिख सको किस बात का तो....."नहींईईई ...बहुत गंदी बात थी वो.....नहीं लिख सकता ...
......और मुझे याद आ रहा था वो अंकित, जिसे उसके पापा और चाचा गाँव से शहर .बेहतर पढ़ाई की सुविधा के लिए होस्टल में लेकर आए थे,तब ५वीं-छठी में रहा होगा वो...
..होस्टल में आए आठ दिन हो चुके थे ,उसका मन नहीं लग रहा था, घर की याद सता रही थी, पेटदर्द का बहाना बनाया था उसने..और रो-रोकर बुरा हाल कर लिया था।
उसके पापा और चाचा को बुलाया गया था उससे मिलने,और उसने जिद्द पकड़ली कि वो यहाँ नहीं पढ़ेगा..किसान पिता समझाते रहे कि -"तुझे बड़ा आदमी बनना है",गाँव में कुछ नहीं है ,खेती में कुछ नहीं मिलेगा।..
एक ही बेटा था वो- तीन भाईयों के परिवार का...बहुत कड़ा मन करके दादा-दादी ने भेजा था उसे शहर ....
इसी बीच अंकित का अगला मेसेज था ---
--" आप अब भी उसी स्कूल में काम कर रही हैं?? छोड़ दिजिए अब .....मैं कमाने लगा हूँ , मेरे साथ रहियेगा...."
21 comments:
sunder post!
is sukun ko mahsoos ker sakti hun ...
हर शिष्य का फ़र्ज़ होता है अपने गुरु का मान रखना और सही समय आने पर गुरु दक्षिणा देना ... सदियों से यही परंपरा रही है !
wah adabhut
बच्चों में यह शिष्य भाव बचे रहना भी सुखद है !
छोटी छोटी बातें संजोयी जाती हैं, सब कोई न कोई हित करती हुयी।
bahut achcha rishta
कभी-कभी ये पल मन को बेहद सुकून देते है ...।
yah pal hamesha yaad rahte hain
इस तरह से अगर कोई अपने जीवन में सुधार लाता है खुशी मिलती है और अगर जिसे सुधार हुआ हो और कुछ बन कर मिले तो और भी ...
बहुत ही सुन्दर
स्नेहासिक्त!
कभी कभी एक पल कितना सार्थक हो जाता है किसी के जीवन में ... दिल को बहुत छू गई ये पोस्ट ...
यकीन नहीं होता कि तुम किसी को थप्पड़ भी मार सकती हो... और अंतिम पंक्तियों ने आँखों को गीला कर दिया!!
बच्चों की अनोखी बातें।
छोटी छोटी बातों को संजो कर रखना यही तो है .....स्नेह का रिश्ता.....मासी जी
...संजय भास्कर
आपका कमेंट किसी ब्लॉग पर देखा...वहीं से क्लिक करके यहाँ तक पहुँचा... पढ़कर अच्छा लगा.
मेरा पिछला कमेंटा गुम गया.....टेस्ट प्लीज!!!
अभी इन्टरनेट पर घूमते एक ब्लॉग पर आपका कमेंट देखा...तो लिंक क्लिक करके आपके ब्लॉग पर कमेंट कर दिया. :)
I am speechless..क्या बोलूं??
एक बोया विरवा जब पेड़ बनकर फ़लने लगे तो बोने वाला आल्हादित होता है उसे देखकर।
इसे कहते हैं अपनापन.
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