Thursday, June 21, 2012

रिश्ता -तुमसे मेरा...

(ये कोई कविता नहीं है बस बात की है मैंने और दिलीप ने)...

अक्सर ऐसा होता है कि
जिंदगी आपको इतना पत्थर कर देती है कि
सबसे दूर जाने का मन करने लगता है
पर कुछ रिश्ते कभी नहीं टूटते
जैसे - तुमसे मेरा....

हमारा रिश्ता ही ऐसा है कि
तुम मुझसे दूर नहीं जा सकते
और
मैं तुम्हें जाने नहीं दे सकती...
बिछड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता..
ये तुम भी जानते हो और मैं भी..
बाँध कर रखा है एक डोर से..
जो दिखाई नहीं देती....










10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मैं न कभी चिंतित होता था, चिंतित होना सीख गया,
हृद पाथर था, अब अँसुओं से सिंचित होना सीख गया,

Anju (Anu) Chaudhary said...

अक्सर अपने सबसे प्यारे रिश्ते में यूँ ही महसूस होता हैं ....

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

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सूचनार्थ


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Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
This comment has been removed by the author.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति

M VERMA said...

रिश्तों की डोर दिखलाई नहीं देती पर शायद अटूट होती है
बहुत सुन्दर

वाणी गीत said...

ना दिखाई देने वाली डोर से बांधा रिश्ता अटूट होता है !
बढ़िया !

सदा said...

वाह ... बेहतरीन

amrendra "amar" said...

akser ham baat hi to kerte hai ....
bahut umda