हर तरफ़ बस तुम ही तुम ....ये ऐसा भाव है जो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है .... आप भी महसूस कीजिए --
सलिल वर्मा जी की एक लघुकथा में --- मैं हूँ ना!
और अब एक गीत मेरे मन से ---तुम्हीं मेरे मन्दिर तुम्हीं मेरी पूजा
सलिल वर्मा जी की एक लघुकथा में --- मैं हूँ ना!
और अब एक गीत मेरे मन से ---तुम्हीं मेरे मन्दिर तुम्हीं मेरी पूजा
7 comments:
वाह!
मधुर...
अति सुन्दर..
उम्दा रचना
वाह..!
सलिल जी की लेखनी और फिर आपकी आवाज...क्या कहने..|
ईमानदारी से कहूँ तो मेरी रचना को स्वर मिल गए जैसी अनुभूति हो रही है.. और उसके साथ गीत ने तो सोने पे सुहागा वाला काम किया है!!
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