कुछ तो है नितिश कु. सिंग के ब्लॉग से उनके दिल कि बात ...
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Sunday, March 31, 2013
Wednesday, March 27, 2013
नए अंदाज
मौन में हुंकार भरते, यही मेरे आगाज हैं
मुआफ कर दें वो सभी, जो हुए नाराज हैं
रंग भरती थीं खुशी से, जिन्दगी में जो मेरी
तितलियाँ वो आज देखो फूल की मोहताज हैं
धड़कनों को तुम मेरी न छीनना मुझसे कभी
गीत मेरे बज सकें उसका वो ही एक साज हैं
एक जुगनू था दिखाता मंजिलें मुझको कभी
उसके खोने के, सुना, अपने अलग से राज हैं
सुन के झूमें ये धरा और झूम उठे वो गगन
धुन सजाने के यहाँ, उसके नये अंदाज हैं...
-अर्चना
मुआफ कर दें वो सभी, जो हुए नाराज हैं
रंग भरती थीं खुशी से, जिन्दगी में जो मेरी
तितलियाँ वो आज देखो फूल की मोहताज हैं
धड़कनों को तुम मेरी न छीनना मुझसे कभी
गीत मेरे बज सकें उसका वो ही एक साज हैं
एक जुगनू था दिखाता मंजिलें मुझको कभी
उसके खोने के, सुना, अपने अलग से राज हैं
सुन के झूमें ये धरा और झूम उठे वो गगन
धुन सजाने के यहाँ, उसके नये अंदाज हैं...
-अर्चना
Saturday, March 23, 2013
Friday, March 22, 2013
Wednesday, March 20, 2013
Monday, March 18, 2013
Friday, March 15, 2013
इन्तजार रात की चौखट पर- भोर होने तक ...
रात की चौखट पर,
शाम के रस्ते ही,
सन्नाटे को चीर,
उदासी पहुँच जाया करती है
जाने क्यों,
रात के घर में
उजेला नहीं हुआ करता,
स्वागत में बत्तियाँ बुझ जाया करती है...
जैसे कल शाम
चल कर आ गई थी उदासी
रात की चौखट पर
और नींद बतियाती रही थी
उसके आने पर
बत्तियाँ बुझा कर...
नम तकिये पर...
आज नींद बिना बताए ही
उदासी संग
निकल पड़ी है घूमने
यादों की गलियों में...
यादों की गलियाँ
इतनी घुमावदार
कि जैसे जंतर-मंतर
एक सिरे से घुसो
तो गुम होकर रह जाओ
वहीं चली जाती है
नींद , उदासी संग
और बिछड़ जाती है मुझसे...
मैं करती हूँ इन्तजार
भोर के होने तक
आती नहीं नींद अकेले
उदासी को छोड़
तुम्हारे जाने के बाद से ही
दोस्ती हुई है- दोनों की
तुम भी बुला लो मुझे
अपने पास या
छुपा लो अपनी बाहों में
गम -ए- जहां से छुड़ा लो...
बहुत उदास हूँ मैं....
Wednesday, March 13, 2013
जिसने विश्व रचा है उसने ...
अहसासों को कलम में उतारना आसां तो नहीं है
मगर कलम को बोलते सुनना अच्छा लगता है ...
आज कलम बोल रही है आशीष राय जी की --
रात:, संध्या, सूर्य, चन्द्रमा, भूधर, सिन्धू, नदी, नाला
जल, थल, नभ क्या है? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा, पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने , प्रथम बनाई बधशाला...
आप सुनिये यहाँ ---
मगर कलम को बोलते सुनना अच्छा लगता है ...
आज कलम बोल रही है आशीष राय जी की --
रात:, संध्या, सूर्य, चन्द्रमा, भूधर, सिन्धू, नदी, नाला
जल, थल, नभ क्या है? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा, पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने , प्रथम बनाई बधशाला...
आप सुनिये यहाँ ---
Tuesday, March 12, 2013
जन्मदिन की शुभकामनाएँ
माँ-----
कब याद नहीं आती ?.....
हर पल,हर दिन .....
मेरे साथ रहती है .....
मुझसे बातें करती है ....
मुझे छोड कर कहीं नहीं जाती है .....
आज भी आयेगी .....और
मेरे साथ केक खाएगी....
माँ को ७५ वें जन्मदिन की शुभकामनाएँ
( केक खाना पसन्द नहीं करती)
माँ भगवान के बनाए हर अस्तित्व से ऊपर ...
जिसका मोह खुद भगवान भी न छोड़ पाए...
कोमलता की मिसाल-माँ
कठोरता की मिसाल - माँ
घबराहट की मिसाल -माँ
हौसले की मिसाल -माँ
गुस्से की मिसाल -माँ
प्यार की मिसाल -माँ
अपनत्व की मिसाल -माँ
ममता की मिसाल -माँ
पूरी दुनिया है -माँ
देवेन्द्र की आवाज में एक विशेष गीत माँ के लिए हम सबकी ओर से ...
एक रूप ये भी
मौसियों के साथ डांस करते हुए
और माँ के कहने पर, माँ को सुनवाने के लिए खोज कर रखा, माँ की पसन्द का ये गीत --सबकी माँ के लिए ये प्रार्थना करते हुए कि माँ हमेशा रहे सबके साथ ...
माँ के बारे में यहाँ भी ...
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आज ही उर्मिला भाभी का भी जन्मदिन है...
बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ उन्हें भी हम सबकी ओर से....
(केक खाना पसन्द नहीं इन्हें भी )
ये गाती भी हैं
और भाभी के लिए एक गीत हम सबकी ओर से -- तुम से ही घर घर कहलाया
हमेशा ऐसी ही मुस्कुराती रहें,यही कामना....
और भाभी के लिए देवेन्द्र का गीत --- ओ साथी रे ..
Sunday, March 10, 2013
आनन्द ---२
आनन्द --- १
....तब से लेकर अब तक आनन्द से सम्पर्क बना हुआ है ... सुख दु:ख के पल साझा करते हैं आपस में मैं और आनन्द ...जब उसे पता चला कि मेरे पैर में फ़्रेक्चर हुआ है ,तब उसने मेरे लिये तीन किताबें और एक बी. पी.मॉनिटर गिफ़्ट में भेज दिया था...अब जब कभी तबियत पूछता है, तो उसे बी.पी. चेक करके उसी समय बताना होता है ... :-)
किताबें पढ़ना जाने कब से छोड़ दिया था ...हर किताब का कोइ न कोई पन्ना खुद की जिंदगी से जुड़ा सा लगता है ..और किताब तो हाथ में ही रह जाती है जिंदगी बन्द आँखों से बह चलती है ,लेकिन जब किताबें मिली जिनमें एक थी हरिशंकर परसाई जी की -"विकलांग श्रद्धा का दौर" जिसमें छोटे -छोटे व्यंग्य़ हैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ,तो उसे पॉडकास्टिंग करने के लिये उपयोग किया और रेडियो प्लेबेक पर भेजे , दूसरी थी प्रेमचंद की -"सेवासदन", बहुत सारी बैठकें दे कर पूरा कर ही लिया और पेंसिल लेकर अंडरलाईन करते-करते पिताजी को याद करती रही , कभी लिख पाई तो अंडर लाईन वाली लाईने सहेज लूंगी यहीं ,और तीसरी किताब है मैत्रेयी पुष्पा जी की - "इदन्नमम",जिसे अब तक कई बार खोला पर बार-बार रख दिया है(बहुत मोटी लगती है-ज्यादा पन्ने हैं) ...पर पढूँगी जरूर आनंद को बताना है को कि मैंने पढ़ा है ....
कई बार वो फोन पर भी बात करता रहा है लेकिन एस .टी. डी. से ,मोबाईल उसे पैसे और समय की बरबादी लगता है ,और अपनी मर्जी से बात करता है ,जब मुझे कुछ कहना हो तो मेल करो ...इस बात पर उसे कहती हूं- पक्का बिहारी गुंडा है ...तो जबाब होता है- वो तो मैं हूँ ही....
बस थोडा -थोडा सीखती रही हूं..इस बार मोबाईल का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही .....
आगे और भी है....मिलते रहेंगे आनन्द से
....तब से लेकर अब तक आनन्द से सम्पर्क बना हुआ है ... सुख दु:ख के पल साझा करते हैं आपस में मैं और आनन्द ...जब उसे पता चला कि मेरे पैर में फ़्रेक्चर हुआ है ,तब उसने मेरे लिये तीन किताबें और एक बी. पी.मॉनिटर गिफ़्ट में भेज दिया था...अब जब कभी तबियत पूछता है, तो उसे बी.पी. चेक करके उसी समय बताना होता है ... :-)
किताबें पढ़ना जाने कब से छोड़ दिया था ...हर किताब का कोइ न कोई पन्ना खुद की जिंदगी से जुड़ा सा लगता है ..और किताब तो हाथ में ही रह जाती है जिंदगी बन्द आँखों से बह चलती है ,लेकिन जब किताबें मिली जिनमें एक थी हरिशंकर परसाई जी की -"विकलांग श्रद्धा का दौर" जिसमें छोटे -छोटे व्यंग्य़ हैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ,तो उसे पॉडकास्टिंग करने के लिये उपयोग किया और रेडियो प्लेबेक पर भेजे , दूसरी थी प्रेमचंद की -"सेवासदन", बहुत सारी बैठकें दे कर पूरा कर ही लिया और पेंसिल लेकर अंडरलाईन करते-करते पिताजी को याद करती रही , कभी लिख पाई तो अंडर लाईन वाली लाईने सहेज लूंगी यहीं ,और तीसरी किताब है मैत्रेयी पुष्पा जी की - "इदन्नमम",जिसे अब तक कई बार खोला पर बार-बार रख दिया है(बहुत मोटी लगती है-ज्यादा पन्ने हैं) ...पर पढूँगी जरूर आनंद को बताना है को कि मैंने पढ़ा है ....
कई बार वो फोन पर भी बात करता रहा है लेकिन एस .टी. डी. से ,मोबाईल उसे पैसे और समय की बरबादी लगता है ,और अपनी मर्जी से बात करता है ,जब मुझे कुछ कहना हो तो मेल करो ...इस बात पर उसे कहती हूं- पक्का बिहारी गुंडा है ...तो जबाब होता है- वो तो मैं हूँ ही....
बस थोडा -थोडा सीखती रही हूं..इस बार मोबाईल का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही .....
आगे और भी है....मिलते रहेंगे आनन्द से
Friday, March 8, 2013
जीवन के इंद्र धनुषी रंग...
महिला दिवस पर विशेष :-
जीवन में,
सुखों और दुखों
के बीच
बिताए सुहाने पलों की खुमारी
वाईन की खुमारी से बेहतर है,
ऐसा नशा - कि
होश ही नहीं रहता ...
कभी देखें हैं तुमने
जीवन के इंद्र धनुषी रंग...
इनसे बिछड़ कर जीने का
मन नहीं होता कभी..
सारी रंगीन तसवीरें ..
साफ़ जो होती है ..
आईने की तरह....
चमकती है --
धूप की तरह...
..........
-अर्चना
Tuesday, March 5, 2013
दिमाग है आपके पास? तो सोचो! सोचो...
अभी तो कुछ लिखा ही नहीं है इस लड़के ने ...कहता है फिर कभी लिखेगा ... जाने कब लिखेगा और क्या लिखेगा भगवान ही जाने ! ... :-) मैं तो सोच रही हूँ ये जब लिखेगा - वो दिन कैसा होगा ?
Sunday, March 3, 2013
एक बार दिल से मुस्कुरा देना ...
आज रेडक्रास से जुड़ी -अंजना दयाल जी से मिलते हैं--ब्लॉग है - रंग बिरंगी एकता
अंजना दयाल जी की एक रचना
अंजना दयाल जी की एक रचना
Saturday, March 2, 2013
तेरी बिंदिया रे.... चुरा ली है मेरी निंदिया रे ....
एक पोस्ट समीर लाल जी की उनके ब्लॉग "उड़नतश्तरी" से . .. कई दिन ....बल्कि साल कहूँ तो भी ठीक होगा से पढ़ रही हूँ ,महीना पंद्रह दिन में याद आती रही है,कई बार कोशिश की रिकार्ड करने की पर मेरी आवाज में कभी अच्छी नहीं लगी मुझे , पोस्ट ही ऐसी है कि पुरूष स्वर में ही अच्छी लगेगी हमेशा ऐसा ही लगा और फिर बनी ये पोस्ट --
और ये रूप भी बिंदिया का --
दासी फिल्म से एक गीत - गायक -मन्नाडे
बिन्दिया जागाए हो रामा निंदिया न आए ....
और ये रूप भी बिंदिया का --
दासी फिल्म से एक गीत - गायक -मन्नाडे
बिन्दिया जागाए हो रामा निंदिया न आए ....
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