Tuesday, January 14, 2014

रात और दिन ....

जब आई तेरी याद
एक लम्हे ने बिताई रात
दूजे ने बिताया दिन
थके मेरे नैन
पल-पल, छिन-छिन....
सांसो की ताल पर
थिरकता रहा मन
मेरे सजन
तुम बिन ,तुम बिन....
पलकों की कोरों से
बिखर गए घूंघरू
बजती रही दिल से
आह! की धुन ...
सुबह की लाली
पूरब से आई
एक नया संदेसा
तेरा फ़िर लाई
फ़िर एक लम्हा
भेज दिया तुमने
संजो लिया फ़िर से
उसको भी गिन
बीत रहे  ऐसे
बस
रात और दिन ....
.......


6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (14-01-2014) को मकर संक्रांति...मंगलवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1492 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मकर संक्रान्ति (उत्तरायणी) की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : मकर संक्रांति और मंदार

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !

Rakesh Kumar said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति
नववर्ष और मकरसंक्रान्ति की शुभकामनाएँ

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियाँ यूँ ही सजी रहें, सुमधुर रहें।