कुछ यूं हुई एक दुर्घटना ......................जनवरी २०१० की बात है ----- चार साल पहले .......
..................... क्रिसमस की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने कों मात्र चार -पांच दिन ही हुए थे ,उस दिन ९ तारीख थी, नए साल की जनवरी की, ऊपर से सेकण्ड सटरडे................बच्चो की प्री -बोर्ड एक्जाम चल रही थी मगर उस दिन पेपर नहीं था .....सो मै अपने एक साथी शिक्षक के साथ बाहर मैदान में धूप में खड़ी थी। ...............बाकी लोग दिखाई नहीं दे रहे थे तो मैंने पूछा ------वे लोग कहाँ है?
------वे टेबल-टेनिस खेलने गए |
-------ओह इतने ऊपर ???(हमारे यहाँ टेबल-टेनिस रूम चौथी मंजिल पर है ) |
----हां ,आज तो मै भी जाऊँगा ,वे लोग रोज खेलते है |
-------अच्छा तो मै यहाँ अकेले क्या करूंगी ,वैसे भी एक घंटे तक कोई क्लास नहीं है ,आज मै भी चलती हूँ |
और हम लोग भी चले गए .............चूँकि मै अपने साथियो में सबसे बड़ी हूँ तो उम्र का लिहाज़ पालते हुए उन लोगो ने मुझे पहले खेलने कों बेट पकड़ा दिया और हम डबल्स खेलने लगे ................हमने दूसरा गेम शुरू किया ही था कि साथी खिलाडी कों जगह देने के लिए पीछे हटी और मेरे बाए पैर के पंजे पर वजन लेकर दाया ऊपर उठाया कि मेरे बाए पैर का अंगूठा अन्दर कि ऑर मुड गया ........एक कड़क कि आवाज आई और मै चीखते हुए कि मेरा पैर गया .............नीचे बैठ गई .....................बस वही पता चल गया कि हड्डी टूट गई ........................तुरंत अस्पताल गए ........................प्राथमिक जांच में ही पता चल गया था कि हड्डी के कम से कम तीन टुकड़े तो है ही ................. इसलिए ऑपरेशन करवाना पडेगा ....................मरती क्या न करती १० तारीख को ऑपरेशन करवाया ,और दस दिन बाद टाँके कटाने के बाद डेढ़ महीने का पलस्तर चढ़ गया ...................अब उम्मीद थी मार्च तक चलने लगूंगी ...............................
और अब इस घटना के साथ जुड़ा घटनाक्रम --------------आप इसे योग कहे या संयोग ----------------
---मै दिसंबर में ही अपनी सासुजी कों नागपुर में मिलकर लौटी ...........उनके घुटनों में हमेशा से दर्द रहता है ..........मेरे लौटने के एक दिन पहले उन्हें खड़े होते समय एक पैर को रखने में कुछ दिक्कत हुई ....जिस दिन मुझे लौटना था उसी शाम पता चला कि शायद फ्रेक्चर है .................मै तो लौट आई मगर दूसरे दिन उनका ओपरेशन करवाना पड़ा .............मै सोचती थी कि इतनी उम्र (७३ ) में कितना मुश्किल होगा दर्द सहन करना |तो .........................इस घटना से अनुभव हो गया ......................
---जिस दिन ये घटना हुई उस दिन सुबह बस स्टॉप पर स्कूल जाने के लिए पहुंची .......( देर हो चुकी थी )........५-७ मिनट इंतज़ार के बाद पास ही खड़े बच्चों से पूछा ---- मेरी बस चली तो नहीं गई न ? एक ने जबाब दिया -- नहीं , थोड़ी शांति मिली ......थोड़ी देर बाद दूसरे बच्चे ने आकर बताया ----आंटी शायद चली गई ..............अब ?? पैदल चलना शुरू किया.....ईश्वर को याद करते हुए ...( जब याद करो तो मदद जरूर करता है )...१०-१५ कदम ही चली थी की एक दुसरे स्कूल की बस पास आकर रुकी देखा तो उसका ड्राइवर पहले हमारे स्कूल में काम करता था, उसने मुझे पैदल चलते देख बस रोकी ,बोला,बैठिए मैड़म मेरी बस में चलिए आगे मिल जायेगी आपकी बस तो बदल लीजियेगा.... बहुत खुश होते हुए मैं बैठ गई..... आगे -आगे देखती रही कि बस कहीं दिखे ..... पर बस न दिखनी थी न दिखी ......
अब उसका रूट भी बदलने वाला था तो एक सहकर्मी शिक्षक को फोन लगाया ,जो उस दिन बाईक से आने वाले थे , हालांकि जानती थी उनका रूट ये नहीं है,पर मेरे कहने से आ जायेंगे ये भी मालूम था ..... किस्मत से वे आगे नहीं निकले थे मैंने कहा-
"सर मेरी बस छूट गई है मैं दूसरी स्कूल की बस से जा रही हूं मगर फ़लां चौराहे से आगे नहीं जायेगी प्लीज आप उधर से मुझे साथ ले लीजियेगा" ...
सर ने कहा- हाँ, ठीक है आप उतर जाईए मैं आ ही रहा हूँ .....
...थोड़ा निश्चिंत होकर बैठी ही थी कि ड्राईवर साहब बोल पड़े - मैड़म थोड़ा आगे उतर जाईयेगा वहां से तो और दूसरे रूट से आने वाली बस भी मिल जायेगी यहाँ कहाँ बीच चौराहे पर रूकियेगा ......
मैंने सोचा ठीक है सर तो आ ही रहे हैं , यहां नहीं तो वहाँ सही जाना तो उनके साथ ही है ..... ड्राईवर साहब को हामी भरी .....और सर को फिर फोन लगाया - सर आगे वाले मोड़ से ले लिजियेगा ये बस जा ही रही है उधर से .....
बेचारे सर ! ...... फ़िर हाँ कह बैठे ....अब मैं बस में आगे-आगे और सर उसी रूट पर पीछे -पीछे ...पर दिखाई कहीं नहीं दे रहे थे ...न ही उनको बस दिखी थी तब तक .....
अब आगे वाले मोड़ पर ड्राईवर साहब ने उतारा ,बहुत-बहुत धन्यवाद कहकर सर के इन्तजार में एक ओर खड़ी ही थी कि मेरी स्कूल का एक बच्चा पास आकर मेरे बगल में खड़ा हो गया ...... मैंने उसे देखते ही पूछा - लेट हो गए?
बोला - नहीं मैडम बस खराब हो गई थी बीच में ....अब आने ही वाली है ...तभी बस आ गई .... अब कंडेक्टर साहब और बच्चा दोनों मुझे सवार करने पर तुले थे ....सर का तब तक भी कोई -अता-पता नहीं था , कंडेक्टर साहब बोले सर तो इधर से नहीं जाते , वो मुड़ गए होंगे पीछे से ही ........
फ़िर कन्फ़्यूज़न ...... अब मरती क्या न करती चढ़ गई इसी बस में ....... तभी फोन की घंटी बजी - कहाँ हैं मैंडम आप ?
कहा- सर सॉरी , मुझे अपने स्कूल की बस मिल गई मैं इसमें बैठ गई , बस आपको फोन लगाने ही वाली थी , प्लीज अब आप राह न देखें , आ जाईये स्कूल .....
....
और प्रार्थना के बाद साथी शिक्षक ( सर) और मैं मैदान में धूप में कड़े हो सुबह की घटना पर हँस रहे थे ..... और वे चलते-रूकते. फोन उठाते, परेशान हो चुके थे और इसी कारण बोले -
हाँ , आज तो मै भी जाऊँगा टेबल-टेनिस खेलने ,वे लोग रोज खेलते है |......
आज याद आने पर हम खूब हँसते हैं कि आखिर उन्होंने मेरी टाँग तुड़वाकर ही दम लिया ........
वो भी टेबल-टेनिस खेलते हुए ..... :-)
3 comments:
हादसे जीवन के संस्मरण बाक्स में दर्ज हो जाते हैं, जब चाहो और खोल कर पढ लो।
मज़ा आ गया, सारी घटनाओं को सुनकर!! होता है कई बार!! और मेरे साथ तो रास्ते पर हुई सारी कंफ्यूज़न में सबसे बड़ी कनफ्यूज़न ये रही है कि जब भी रास्ता भूलकर अन्दाज़े से कोई एक रास्ता चुना है, वो हमेशा ही गलत निकला है!! ये फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी का संजोग मेरे साथ कभी नहीं सच हुआ!!
स्कूल पहुँचने की घटनाओं पर तो फिल्म बन सकती है।
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