न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
ये नानी को भी न जाने क्या-क्या याद आ जाता है-- है तो पाकीज़ा फिल्म का संवाद पर आप ही बताईये भला- पाँव तो जमीन पर ही होने चाहिए न !
मायरा! ये तुमसे किसने कह दिया कि पाँव ज़मीन पर ही होने चाहिये!! अपनी नानी को ही देख लो... जब से तुम पैदा हुई हो उसका यही हाल है - आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुये!!
सही कहा. पांव तो ज़मीन पर ही होने चाहिए
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मायरा! ये तुमसे किसने कह दिया कि पाँव ज़मीन पर ही होने चाहिये!! अपनी नानी को ही देख लो... जब से तुम पैदा हुई हो उसका यही हाल है -
आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे,
बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुये!!
सही कहा. पांव तो ज़मीन पर ही होने चाहिए
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