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.....इसे आप मायरा के ब्लॉग "नानी की बेटी" पर भी पढ़ सकते हैं.
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
उत्तरायण...
आज की सुबह जल्दी हो गई....
संक्रांति का असर है शायद......
ऐसा ही रहा तो दान-पुण्य भी हो लेंगे......
करने का क्या है?
होना तो तय है......
बस! देखना है सूर्य जो उगने वाला है
कितना तपेगा और तपायेगा.....
धरा, जो जागने वाली है
कितनी जागृत रह पाएगी
जीव-जन्तु
पंछी,जो जाग कर हमें जगाएंगे
कितना गान कर पाएंगे
कब दाने की तलाश में निकलेंगे
कब लौटेंगे
रंभाएंगी गाएं
और सूर्यास्त होगा...
मेरा......
सबको शुभ हो
आज की सुबह
पहला दान
हुआ मेरा
...
सुप्रभात....