सुबह उठते ही नाक लंबी लंबी साँसे लेने को व्याकुल हो उठती है ,जीभ फडफडाकर सिंहासन करने को उग्र हो जाती है, गला दहाड़ कर शेर से टक्कर को उद्दत होने लगता है , बाकी शरीर मरता क्या न करता वाली हालत में शवासन से जाग्रत होने पर मजबूर हो जाता है बेचारा, योग की आदत के चलते ...
योग का मतलब प्राणायाम युक्त शारीरिक व्यायाम ज्यादा अच्छा है समझने को , अब समझें प्राणों का आयाम ...
सिर्फ सांसो का आना जाना जीवन नहीं , उसका उछलना,कूदना डूबना,उतराना,चढ़ना, उतरना ,भागना,रूकना जी-वन है, इस हर क्रिया में शरीर को चुस्त दुरुस्त बनाये रखना योग का एक भाग हो सकता है ।
योग का एक मतलब जोड़ भी होता है उस अर्थ में एकाग्रता को केंद्र में रखा जा सकता है कि प्राणवायु के साथ शरीर और मन जुड़कर रहे ,जुड़े रहकर सबको जोड़े रह सकें।
योग व्यंग्य का विषय तो नहीं होना चाहिए पर बना दिया गया ।
पहले योग में सब कुछ त्याज्य की भावना प्रबल थी अब ग्राह्य भावना का जोर है ,जोड़ने के नाम पर सबसे पहले योग में मात्रा जोड़ योग को योगा बना लिया गया, फिर नंगधडंग शरीर को ढँकने के यौगिक वस्त्र अपनाए जाने लगे , दरी की जगह मेट ने ली जिसके गोल गोल रोल ही उठाए जा सकते हैं जो दृष्टिगोचर होते रहें जिससे दूर से ही व्यक्ति यौगिक लगे।
बचपन में जबरन योग शिविर में जो कुछ सीखा वो भी इसलिए कि बाकी लोग वो आसन नहीं कर पा रहे थे पर मन पर असर कर गया।
मुझे याद है जब छठी कक्षा में थी एक योगी आया था स्कूल में अपने योग का प्रदर्शन करने ,हमारी कन्याशाला थी ,सब लड़कियों को एक हॉल में इकठ्ठे किया गया और करीब 2 घंटे तक उसने भिन्न भिन्न क्रियाएं और आसन करके दिखाए थे,जब उसने अपना पेट उघाड़ के आँतड़ियों को मथते हुए दिखाया सब मुँह दबाकर हंसने लगे थे लेकिन उसका तेजोमय चेहरा आज भी उसकी याद दिला देता है,जो आंतरिक तेज से जगमग था शायद....
आज लोग खा पीकर मोटापे से त्रस्त हो रहे हैं और योग बाबाओं की भरमार हो गई, योग भी वस्तु की तरह बाज़ार में आ गया ..और चेहरे को तेजोमय बनाने की यौगिक क्रीम ,तेल उपलब्ध हैं ...शरीर पर असर करने से ज्यादा जेब पर असरकारी हो गया योग और चेहरे का तेज आंतरिक न होकर बाह्य रह गया ....समय और सत्ता परिवर्तन के चलते कालांतर में राजनीति भी सीख लिए योगी...
परिणाम स्वरूप बन गया - यही व्यंग्य का विषय !!!
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Sunday, June 25, 2017
योगा के योगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
बहुत सटीक...आप तो हर विषय पर कलम साध देती हैं :)
हर विषय पर लिख सकना मानसिक योगी की श्रेणी में आता है।
sundar rachna ....badhai
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ईद मुबारक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
Post a Comment