Thursday, June 17, 2010

फिल्म -----गुड्डी का गीत ----वाणी जयराम जी का गाया .....................

बोले रे पपिहरा ,पपिहरा 
नित घन बरसे ,नित मन प्यासा 
नित मन प्यासा.नित मन तरसे 

पलको पर एक बूँद सजाए 
बैठी हूँ सावन ले जाये  
जाए पी के देस में बरसे
नित मन प्यासा.नित मन तरसे 

सावन जो संदेसा लाये मेरी आँख से मोती पाए 
दान मिले बाबुल के  घर से नित मन प्यासा.नित मन तरसे

कठिन से कठिन प्रयास  करना .........जुझारू प्रवृत्ति को दर्शाता है ...............................अंत में सबका भला होता है ........(ऐसा अगर किसी ने ना कहा हो तो मेरा समझे )............
सुनिए मेरी आवाज में  ...........

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाणी जयराम के स्वर में यह गीत बहुत पहले सुना करता था! आपने भी इसे बहुत ही मधुरता के साथ गाया है!
--
इस गीत को सुनवाने के लिए!
आपका आभार!

दिलीप said...

bahut hi madhurta se gaya...

दीपक 'मशाल' said...

घर के नेट ख़राब है.. लैब में सुन नहीं सकता.. पर इतिहास देख कर कह सकता हूँ कि आपने गाया तो अच्छा ही गाया होगा.. ठीक होने के बाद ही सुन पाऊंगा..

दिगम्बर नासवा said...

आपने इसे बहुत मधुरता के साथ गाया है ...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मस्त गीत है,सुबह सुबह मन प्रसन्न हो गया।
आभार

Girish Kumar Billore said...

vah

Anonymous said...

खरगोश का संगीत राग रागेश्री
पर आधारित है जो कि खमाज
थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
मिलती है...
Also visit my web blog खरगोश