Thursday, September 9, 2010

टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी..............

टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी जीती रही मै
कतरा कतरा गम पीती रही मै
जख्मो पर लगे कच्चे टाँके
बार-बार रह रह कर सीती रही मै ...

14 comments:

Manish aka Manu Majaal said...

आप ही जिंदगी से गुजर गए होते,
अब तक तो कब के मर गए होते,
यादों ने जो न की होती जख्मों छेड़छाड़,
कभी के वो अब तक भर गए होते ....

Udan Tashtari said...

ओह! जबरदस्त!

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरी, हृदय में उतरती हुयी।

उम्मतें said...

सबका सच !

arvind said...

gahare dard kaa ehsaas karati panktiyan..bahut badhiya.

राज भाटिय़ा said...

इसी को जिन्दगी कहते है,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर मुक्तक है।
--
जीवन की आपाधापी में झंझावात बहुत फैलें हैं!

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर...

संजय @ मो सम कौन... said...

ऐसी रचना पर बहुत सुन्दर भी नहीं कह सकता मैं।
आप गाती हैं, कभी सुनिये भी
’दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है।’

आभार।

Parul kanani said...

so beautiful!

रानीविशाल said...

waah! bahut khub
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

बढिया..

P.N. Subramanian said...

बहुत सुन्दर. लगता है आपतो एक स्थापित कवियत्री हैं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह ....बहुत सुन्दर ...