न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे,
न ही किसी कविता के,
और न किसी कहानी या लेख को मै जानती,
बस जब भी और जो भी दिल मे आता है,
लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Wednesday, September 22, 2010
जी करता है जी लूं--
मेरे नसीब में नहीं है, जीना प्यार की जिंदगी
दिल करता है ले लू, जो मिले उधार की जिंदगी
सुन -सुन कर किस्से, खुशियों भरे गुलशन के
जी करता है जी लू, थोड़ी सी बहार की जिंदगी ....
10 comments:
जी करता है जी लू, थोड़ी सी बहार की जिंदगी ....
यकीनन
चार पंक्तियों में आपने बहुत ही सुंदर बात कह दी
बेहतरीन, बस मेरी चाह है, यही मेरी राह है।
ख्याल नेक है :)
चार पंक्तियों में जीवन का सार और बहार शामिल किया है.....
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं.....
bahut sahi hai
हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता इस दुनिया में ..फिर भी किसी ना किसी बहाने जिए चले जा रहे हैं ...
सुन्दर रचना
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।। [गीता]
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
बहुत खूब, सुन्दर पंक्तियों ने भावविभोर कर दिया, आभार ।
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