Thursday, July 19, 2012

बदली और बारिश...







मौसमों की राह नही तकती बदली
मेरी पलकों में छुप जाती है
जब भी उसका मन चाहे
बिन मौसम ही बरस जाती है...



पानी का मोल भी नहीं जानती
कई बार प्यासी रह जाती हूँ
सूने सपाट जीवन को ढोते
इंद्रधनुषी रंगों को तरस जाती हूँ...










सावन के झूले  याद आते मुझको
ताल के मेंढ़क जब भी टर्राते
मन भी मचल उठता है मेरा
जब मोर,पपीहा,कोयल गाते...

-अर्चना

6 comments:

केवल राम said...

बेहतर अंदाज शब्द और चित्र ....दोनों में मुकाबला हो रहा है और दोनों ही बेहतर भाव सम्प्रेषण कर रहे हैं ...!

प्रवीण पाण्डेय said...

ऐसा लगता है कि एक अव्यक्त शीतलता ने घेर लिया हो।

Vinay said...

बेहतरीन कविता है

Ramakant Singh said...

आपने जिंदगी को जैसे जिया या जीने का प्रयास किया उन्हें आपने शब्द नहीं मायने दे दिए ,अच्छा लगा शब्द चित्रों और भावनाओं का संयोजन .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! चित्रों के साथ शब्दों ने मिलकर अभिव्यक्ति की जोरदार बारिश की है।

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत प्रभावपूर्ण रचना !