Wednesday, October 16, 2013

एक ब्लॉग की लिंक दे दे बाबा तेरे बच्चे जुग-जुग जियें......

डुंग डुंग डुंग डुंग डुंग डुंग....

साहिबान,मेहरबान,कदरदान
हिम्मत रखकर इस खेल को देखिएगा...
जान को हथेली पर रखियेगा
ये रोज रोज का तमाशा ख़तम करने का वास्ते आगे आईयेगा
बड़ा-छोटा,पतला-मोटा,नया-पुराना सब के वास्ते है
बेटा जमूरे ,हम किसके वास्ते है?

पब्लिक के वास्ते
पब्लिक हमको जानती है?
जानती है उस्ताद
कैसे?
ये आपसे रिश्ता जोडती है
कैसे?
कोई माँ,कोई माताजी ,कोई मासी,कोई बुआ
कोई दी तो कोई जिज्जी,दीदी कहता है
कोई बेटी भी मानता है....
तो कोई दोस्त बना लेता है...
कोई तो यार.....
जमूरे!!!!!!!!!!!!!!!!
माफ़ी उस्ताद....
माफी क्यों?
जुबान फिसल गयी उस्ताद, जानता हूँ ,


बोल बेटा जमूरे पब्लिक को हँसाएगा?
हँसाएगा उस्ताद!
बच्चा लोग को मना लेगा?
मना लेगा उस्ताद!
बड़े साब लोगों को मना सकेगा?
मनायेगा उस्ताद
मेमसाब लोगों को मना सकेगा?
कोशिश करेगा उस्ताद....
कोशिश करने से क्या होता है?
कोशिश करने वाले क़ी हार नहीं होती
अरे!वाह ,और क्या सीखा?
यही की कोशिश करने वाले की कार बी नहीं होती
तो लेकर क्या कर लेगा? जमूरे! पीटेगा?
नई सरकार...
वो जुबान फिसल गयी उस्ताद
ह्म्म्म ! तो चलो पब्लिक को सलाम ठोंक दो
ठोंक दिया उस्ताद
कैसे ?
ये पब्लिक है , सब जानती है उस्ताद

तो बोलो मुख्पुस्तक की जय ...
जानते हो क्या करना है?
जानता हूँ उस्ताद...
सब ब्लोगर्स (स्त्री-पुरुष)
के आगे हाथ फैला कर एक चक्कर लगाना है
तो शुरू हो जाओ----

साहिबान,मेहरबान,कदरदान
हिम्मत रखकर इस खेल को देखिएगा...
जान को हथेली पर रखियेगा
ये रोज रोज का तमाशा ख़तम करने का वास्ते आगे आईयेगा
बड़ा-छोटा,पतला-मोटा,नया-पुराना सब के वास्ते है
अमीर-गरीब,जात-पात छुआ-छूत भुलाकर मदद करियेगा
आप लोग को सिर्फ अपने ब्लॉग की लिंक कमेन्ट में देनी है,बदले में उस्ताद के परिवार का हिस्सा बन जाएँगे आप...
बना लेंगे मिलकर "अपना घर"
तो लाईक के बदले अपने ब्लॉग की लिंक दे दो बाबा ...... कमेन्ट में......
और देखो आज तक सबसे बड़ा जान लगा देने वाला खेल.........
....
सलाम साब......सलाम मेमसाब....... जियो बेटा ......खुश रहो.....

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (17-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा - 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सदा said...

क्‍या बात है ..... बहुत खूब :)

vandana gupta said...

जय हो क्या खूब अन्दाज़ है

प्रवीण पाण्डेय said...

हा हा हा हा, जय हो।

Unknown said...

Mast :D