वो मुझे नागपूर में मिली थी , पडोस के मकान में रहती है ,जब भी सासुमां से मिलने जाती हूं उससे भी मुलाकात हो जाती है , दो प्यारे -प्यारे बेटे हैं उसके ...
इस बार वो बहुत दिनों तक दिखी नहीं , मेरी वापसी का दिन पास आ गया ... एक दिन पहले आई वो .... मैंने पूछा - कहाँ चले गए थे आप लोग ?
बताया कि इनमे भाई का देहान्त हो गया तो घर गए थे ...
मुझसे पूछा कि अभी तो रहेंगी न आप ?
मैंने कहा - नहीं कल वापस जाना है .....
बोलकर गई कि जाने से पहले घर आना थोड़ी सी देर के लिए ही सही ,
और जब मुझे निकलना था तो मैं उससे मिलने गई ... दस मिनट में ही दस साल की कहानी सुना दी उसने ...
ये दो भाई थे , इनके पिताजी,हमारे ससुर और सास ने बहुत परेशान किया हमें, जब बड़ा बेटा छोटे के जितना बड़ा था |
हर काम के लिए , खाने के लिए कहीं आने-जाने के लिए सबके लिए बस टोकते रहते थे ... (- ये तूने झाडू़ लगाई है ? देख कितना कचरा बाकि है,चाय पीने का मन हो और अपने लिए चाय बनाओ तो - ननद कहती ऐ भैया शक्कर के दाम बढ़ गए हैं...) मतलब अपन ने समझ जाना कि अपने को चाय नहीं बनानी है.......
...आखिर हमें घर से अलग कर दिया ...बड़े भाई ,भाभी उनकी दो बेटियां और ननदें सब एक ओर हो गए ... जब घर से निकले तो कुछ नहीं था,हमारे पास सिर्फ़ ३-४ बर्तन ... दूध भी कढाही में गरम करना पड़ता था । एक चीज बनाओ उसे दूसरे बर्तन में निकालो तब दूसरी ..... ससुर ने मकान बेचकर पैसा भी दूसरे भाई को दे दिया, हमें कुछ नहीं दिया ... और उन्होंने सब इधर-उधर कर दिया ....
१५ दिन पहले खबर आई कि इनके भाई का निधन हो गया ... तब क्या करते ... गए हम ... सब भूल कर ...
लेकिन बहुत बुरा लगा कल तो आने से पहले बहुत रोई मैं ......ऐसा भी किसी के साथ नहीं होना चाहिए ...
मैंने पूछा क्या बिमार थे वे ?
नहीं हार्ट अटैक से .....
ओह! .... दुख जताया मैंने ...पूछा अब ?....
आगे बताने लगी उन लोगों ने भाभी को उनके मायके भेज दिया, उनके तो मां बाप भी नहीं है अब, और वे पढी़ लिखी भी नहीं हैं ..... दोनों लड़कियों को अपने पास रखा है , लड़कियां इतनी छोटी भी नहीं है,मगर जाने क्या सिखाया है ननदों ने कि माँ को तो कुछ समझती ही नहीं ...
मैंने पूछा भाभी अब किसके पास हैं ? उनके भाई के .... मेरी बात काटते हुए बोली -- नहीं उनका कोई भाई नहीं है ,चार बहनें ही हैं वे ,सबसे छोटी बहन से कहा कि जब तक उनकी बेटी को पिता की जगह नौकरी नहीं मिलती तब तक उन्हें वहीं रख ले यहाँ खर्चा चलना मुश्किल होगा .....
हम भी कुछ कर नहीं सकते थे ,इतना छोटा सा घर, दोनों बच्चों की पढ़ाई और इनकी कम सेलरी ...वैसे ही बहुत मुश्किल होता है ,अभी मैं एम. ए. की परीक्षा भी दे रही हूं परसों पेपर है मेरा ....यहां भी तो नहीं ला सकती थी , एक पलंग डला है उन्हें लाकर नीचे सुलाते ......अच्छा भी तो नहीं लगता ....
अपनी बहन के साथ जाते हुए वो बहुत रो रही थीं ........
...पर देखो हमारे साथ इतना सब करने के बाद भी काम कौन आया ? ... हमने ही किया न सब .....
और मैं उठ कर चली आई .....मेरी बस का समय हो रहा था ....सोचती रही रात भर सफ़र में .....
घर तो मेरा भी छूट रहा था .....
ये आंगन हमेशा ,अपलक ताकेगा
"मन" हर बार मन से कोसों दूर भागेगा ...
रात का पहर दूसरा हो या तीसरा
सोने का बहाना कर मन तो बस यूं ही जागेगा...
बस की खिड़की से नज़रें ऊपर ताक रही थी ,तभी फ़ेसबुक पर लिखा था ---
"चाँद मेरे साथ चल रहा है"........
10 comments:
सोने का बहाना कर मन तो बस यूं ही जागेगा...
मन को छूती पोस्ट
संबंधों का कुछ वर्षों का मानने की भूल पता नहीं कैसे कर बैठते हैं लोग? विचारणीय कहानी।
कल 18/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
आज की कहानी ...
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
मन छूने वाली रचना
मर्मस्पर्शी कहानी |
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एक बेहतरीन ट्रांसफोर्मेशन देखा है मैंने तुम्हारे अंदर.. जब से तुम्हारे ब्लॉग को देखना-सुनना शुरू किया है तब से लेकर आजतक तुम्हारी रचनाओं में गज़ब की गंभीरता और लेखन में गहराई.. जीती रहो बहन!!
दिल से लिखना इसी को कहते हैं!!
आप सभी का आभार !
मन छूने वाली रचना उम्दा
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