Friday, September 26, 2014

नवरात्रि




माँ ने सिखाया 
प्रेम करो सबसे
मिलके रहो ..

देखने तुम्हें
हर वर्ष आउंगी
खुश रहना
... 

आत्मसम्मान
  विश्वास और आस्था
नवरात्रि में 
 
  नई उमंग... 
नीरस जीवन में 
भर देती माँ...

जय माता की
कह देने भर से
धुलेंगे पाप....

जय माँ अम्बे
अधर्म का नाश हो
तेरी कॄपा से..

9 comments:

संजय भास्‍कर said...

माँ अम्बेब की जय हो !
नवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-09-2014) को "अहसास--शब्दों की लडी में" (चर्चा मंच 1749) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
शारदेय नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
नवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४

Unknown said...

Bahut bhaawpurn rachna.... Umdaaa... Navratro ki shubhkaamnaayein !!

Uppal said...

Sweet and touching!

Anonymous said...

जय माता की

Jyoti Dehliwal said...

बहुत भावपूर्ण एवम् सुन्दर रचना...

Jyoti Dehliwal said...

बहुत भावपूर्ण एवम् सुन्दर रचना...

Jyoti Dehliwal said...
This comment has been removed by the author.