Monday, September 15, 2014

सुप्रभात







सितारों की दुनिया से
हमको लौटा लाया सूरज
अंधेरी सुनसान रात को
फ़िर भगा आया सूरज

देखो किरन कैसे 
जगमगाई है
नन्ही सी चिरैया भी 
चह्चहाई है
ओस का बोझ 
नन्ही दूब ढो नहीं पा रही
और कीचड़ से सने अपने पैर 
धो नहीं पा रही


कहीं-कहीं बादल 
अब भी कड़क रहे हैं
सूरज के डर से 
दूर ही बरस रहे हैं....
अपनी- अपनी रोटी तलाशने को
फ़िर भी मजदूरों को जगा आया सूरज
सपनों की दुनिया से 
हमको लौटा लाया सूरज !

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर चित्रावली।
सार्थक रचना।।