Monday, April 18, 2016

खतरा


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Friday, April 15, 2016

भगवतीपद्यपुष्पाञ्जलीस्तोत्रान्तर्गतं महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्


॥ भगवतीपद्यपुष्पाञ्जलीस्तोत्रान्तर्गतं महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् ॥
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३॥
अयिशतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते
रिपुगजगण्डविदारणचण्डपराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्डनिपातितखण्डनिपातितमण्डभटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४॥
अयि रणदुर्मदशत्रुवधोदितदुर्धरनिर्जरशक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशिवदूतकृतप्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतकृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५॥
अयि शरणागतवैरिवधूवरवीरवराभयदायकरे
त्रिभुवनमस्तकशूलविरोधिशिरोधिकृतामलशूलकरे ।
दुमिदुमितामरदुन्दुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६॥
अयि निजहुँकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते
समरविशोषितशोणितबीजसमुद्भवशोणितबीजलते ।
शिवशिव शुम्भनिशुम्भमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७॥
धनुरनुसङ्गरणक्षणसङ्गपरिस्फुरदङ्गनटत्कबके
कनकपिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भटशृङ्गहतावटुके ।
कृतचतुरङ्गबलक्षितिरङ्गघटद्बहुरङ्गरटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८॥
सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते
हासविलासहुलासमयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे ।
धिमिकिटधिक्कटधिकटधिमिध्वनिघोरमृदङ्गनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९॥
जय जय जप्यजये जयशब्दपरस्तुतितत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्जिमिझिङ्कृतनूपुरसिञ्जितमोहितभूतपते ।
नटितनटार्धनटीनटनायकनाटितनाट्यसुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १०॥
अयि सुमनःसुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनीरजनीरजनीरजनीरजनीकरवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११॥
सहितमहाहवमल्लमतल्लिकमल्लितरल्लकमल्लरते
विरचितवल्लिकपल्लिकमल्लिकझिल्लिकभिल्लिकवर्गवृते ।
सितकृतफुल्लिसमुल्लसितारुणतल्लजपल्लवसल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२॥
अविरलगण्डगलन्मदमेदुरमत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधिरूपपयोनिधिराजसुते ।
अयि सुदती जनलालसमानसमोहनमन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३॥
कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकलितामलभाललते
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुलकुवलयमण्डलमौलिमिलद्भकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४॥

करमुरलीरववीजितकूजितलज्जितकोकिलमञ्जुमते
मिलितपुलिन्दमनोहरगुञ्जितरन्जितशैलनिकुञ्जनिकुञ्जगते ।
निजगुणभूतमहाशबरीगणसद्गुणसम्भृतकेलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५॥
कटितटपीतदुकूलविचित्रमयूखतिरस्कृतचन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुरमौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नखचन्द्ररुचे ।
जितकनकाचलमौलिपदोर्जितनिर्झरकुञ्जरकुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६॥
विजितसहस्रकरैकसहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारकसङ्गरतारकसङ्गरतारकसूनुसुते ।
सुरथसमाधिसमानसमाधिसमाधिसमाधिसुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमेवमनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८॥
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुसिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणिनिवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २०॥
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासि रते ।
यदुचितमत्र भवत्युररिकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१॥
॥ इति श्रीमहिषासुरमर्दिनि स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Sunday, April 3, 2016

समय


1)
समय तुम बलवान
पर बल का मत करो गुमान 
.
.
.
उसके घर देर है अंधेर नहीं........
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2)

वक्त आता है दबे पाँव
चला जाता है दबे पाँव
.
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हमें धप्पा-धप्पी नहीं खेलनी .....फुट!!!!!!!

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3)
हवा ,पानी और आग
धुआँ ,जलन और राख़


समय -समय की है बात !.........
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-अर्चना







Saturday, April 2, 2016

कुछ मन की कही

बिखरने लगे हैं फूल भी अब पत्तों के साथ 
एक ख्वाहिश होती है जीने की सबकी अपनों साथ ....





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अब रंगे चेहरों को देख दिल भर गया है बहुत 
कोई साफ़ चेहरा हो तो देखने का मन भी करे ...


--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- परखने को तो बहुत है परखने वाले 
अपना ही मन पत्थर हुआ तो कोई क्या करे ...


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संघर्ष करते रहना ही जिन्दगी है
गम को दिल में छुपा कर हँसना ही बन्दगी है




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अपना आकाश होगा, तो अपनी जमीं भी होगी
जिसमें अपने हिस्से की थोड़ी सी नमीं भी होगी...





----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- सागर की लहरे भी थक गई होंगी उछल-उछल
पर अब भी जाने क्यूँ है अन्दर गहरी हलचल



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गुबार हो या बारिश सब कुछ धुंधला जाता है,
गुजरते वक्त के साथ सब कुछ गुजर ही जाता है ..








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ढँक देने से दुख कम तो नहीं होते
पर खुशी बाँट देने से ही बढ़ती है ...






-अर्चना चावजी

कसीदाकारी .... हाथ से काढ़े रूमाल

1984 में सिलाई/कढ़ाई/बुनाई सीखी थी ...तब के बनाए कुछ रुमाल अब तक संभाल कर रखे हैं ...एक झलक -
1-हेरिंगबोन 


2-बटनहोल 


3- पेचवर्क 


4-रनिंग स्टिच 


5- फेदर + बंद बटनहोल 


6- स्टेम स्टिच 


7- रेखा चित्र (स्टेम स्टिच)


8- चेन स्टिच 


9- लॉन्ग एंड शॉर्ट स्टिच 


10- फ्रेंचनॉट


11- नेट वर्क 


12- नेट पेच वर्क 


13- छाया चित्र (स्टेम स्टिच)


14- सीप स्टिच 


15- मोती वर्क 


16-एप्लीक वर्क 


17- वन स्टिच 


18- कट वर्क 


19- लच्छी वर्क 


20- फ्रेंचनॉट + लेज़ीडेजी 


21- 



22- पदम स्टिच 


23- कश्मीरी