जब भी जुलाई का महीना आता है तारीखें सामने आती है और उनसे जुडी घटनाएं भी ..सबसे पहले सुनिल का जन्मदिन 13 को फिर 20 को पल्लवी का ....कितना सुखद संयोग बेटी और पिता का जन्मदिन जुलाई में और माँ और बेटे का अक्तूबर में.......
खुशी के साथ ही ये महीना दुःख भी ले आता है .....सब कुछ आँखों के सामने आ जाता है बिलकुल किसी फ़िल्म की कहानी की तरह ......
बाकि सब तो समय के साथ स्वीकार कर लिया ....लेकिन एक बात मुझे आज भी अचंभित करती है.....ये तब की बात है 1993 के जुलाई माह से कुछ पहले की शायद 1 महीने पहले से कई बार एक सपना आता जिसमें मुझे लगता की मैं नीचे की और सीढियाँ उतर रही हूँ..सीढ़ियों पर पानी बहते जा रहा है,फिसलन है,बहुत भीड़ है बहुत लोग धक्का देते हुए उतर रहे हैं....मेरे साथ बच्चे हैं मैं उनको सम्भालते हुए उतरती जा रही हूँ ..और बहुत नीचे एक मंदिर है जहाँ दर्शन होते है ...सुनिल पर गुस्सा भी करती जाती हूँ कि आप तो नीचे नहीं उतरे ऊपर से हाथ जोड़ दिए मुझे दोनों बच्चों को लेकर उतरना कितना कठिन हो रहा है ......भगवान कौनसे हैं ये दिखने से पहले सपना टूट जाता और मैं याद करती तो लगता बड़वानी के गणेश मंदिर जैसा जो कुँए के पास था....और आधे कुँए में उतरकर दर्शन करते थे ....सोचती ये तो वही मंदिर है जो भाभी के घर वाला है ...ननिहाल जाने पर बचपन से देखते रही हूँ...
लगता देखा हुआ है इसलिए सपने में दिखता होगा ...लेकिन जब सुनील के शिलाँग के पास 24 जुलाई को हुए एक्सीडेंट की खबर 25 जुलाई को रांची में मिली और बच्चों को छोड़ गौहाटी जाना पड़ा ....तब सुनिल 2 महीने कोमा में थे ...कोई चारा नहीं था सिवा प्रार्थना के ...वहाँ किसी ने बताया कामाख्या मंदिर में जाओ.....तो मैं पहली बार गई उनके लिए प्रार्थना करने ..जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया ....हूबहू सपने वाली जगह लगी...और जब माताजी का दर्शन किया तो लगा मुझे सपने में यही बहता पानी ....दिखता था .....2 महीने में बहुत बार गई....हर बार सपना सच्चा ही साबित हुआ ...बिलकुल वही मंदिर .....और एक बात कि उसके बाद कभी वो सपना नहीं देखा ....उनको तो बचाकर लौटा नहीं पाई मैं ...लेकिन उसी शक्ति ने ...साहस भरा यहाँ तक आने का ....
हर जुलाई में ये घटना ताज़ी होकर याद आ जाती है ...क्या ये पूर्वाभास था ?छठी इंद्रीय द्वारा ......
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Wednesday, July 12, 2017
छठी इंद्री
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
सपनों का कुछ ना कुछ तो ताल्लुक अवश्य होता है हमारे जीवन की घटनाओं से, यह अभी भी शोध का विषय है. कामाख्या मंदिर के नीचे एक कुंड हैं जहां सीढियों से होकर ही जाया जाता है, हो सकता है यही सपने वाली जगह रही हो और आपको अंतत: वहां जाना ही पडा.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
कभी कभी ऐसे पूर्वाभास होते हैं जो अक्सर सच सिद्ध हो जाते हैं बेशक पहले उनके अर्थ समझ नहीं आते
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (13-07-2017) को "पाप पुराने धोता चल" (चर्चा अंक-2665) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut badhiya rachna padhkar atyant harsh hua
कभी कभी कुछ ऐसा होता है....जब दृश्यों को सामने देखते हैं तो आश्चर्य होता है
हृदयस्पर्शी संस्मरण ! आप स्वयं साहस की प्रतिमूर्ति हैं अर्चना जी ! आपको और आपके इस जज्बे को मेरा सलाम !
Post a Comment