Saturday, April 22, 2017

गर्मी आई गर्मी आई





गर्मी आई गर्मी आई
छुप गया कम्बल
छुपा दी गयी रजाई
रसभरी लीची ,हरे -काले अंगूर,
और रसभरा तरबूज खाओ
केरी-पुदीने का शरबत
और आम का ठंडा रस
कूलर वाले कमरे में
पियो चटखारे ले लेकर
लू भरी दोपहरी को छकाओ
इमली की चटनी
और खीरे का रायता
नानी को पटाकर,
नानी से बनवाओ
दोपहर में नानी की बात मानो
बाहर न निकलो
शाम को नानी को साथ घुमाओ
खुद आईस्क्रीम खाओ
नानी को ठंडी-ठंडी
लस्सी पिलाओ। ..
बस!! ऐसे ही मस्ती में
गर्मी को दूर भगाओ !!!
-अर्चना

5 comments:

Onkar said...

वाह, मज़ेदार कविता

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

'एकलव्य' said...

सुन्दर वर्णन ग्रीष्म काल का ,आभार।

Ravindra Singh Yadav said...

क़स्बाई परिवेश की कविता पढ़कर अच्छा लगा। शब्दों में इतनी सरलता कि बच्चे भी समझ सकें। बधाई।

प्रतिभा सक्सेना said...

यही तो हैं गर्मी के मज़े-बस एक डर, बिजली न चली जाय कहीं .