Friday, May 15, 2009

रिश्तो में दरार---एक कडवा सच !!!

अतुल को उदास देखकर सहज ही पूछा था क्या हुआ ?
----- कुछ नहीं , यूँ ही , कहकर उसने टाला था ।
-----फ़िर भी ?--- उदास लग रहे हो ?
 ----- नहीं तो, क्या करूँगा उदास होकर ?
------ क्या घर की याद आ रही है ?
------नहीँ , क्या करेंगे याद करके ?
------अरे , ये भी कोई बात हुई ? घर की याद तो आती ही है ।
----- कैसा घर ?, किसका घर ?
-----क्यूँ ? मैने पूछा।
------- केजी टू से तो यहीं हूँ , अब यही मेरा घर है ।
----- फ़िर भी घर पर कौन -कौन है ?
------- सब हैं
----- फ़ोन कर लिया करो ।
------ क्या करेंगे फ़ोन करके ?
-----पूछ लिया करो सब कैसे हैं ?
-----क्या पूछेंगे ? हमेशा रटारटाया जबाब होता है---सब अच्छे हैं ,और जब हमसे पूछेंगे तो हम भी वही कहेंगे---अच्छे हैं ।
----- अरे , तो कौन -कौन हैं घर में, सबका नाम लेकर पूछ्ना --- वो क्या कर रहे हैं ?
--------- सब हैं--- मम्मी-पापा, दीदी , दादा- दादी , अंकल - आंटी , सबके बारे में पता है- दो लोग टी वी देख रहे होंगे ,तीन खाना खा रहे होंगे और दो बतिया रहे होंगे इस समय , यही उनका रूटीन है

------मैं अवाक थी , १० वीं में पढने वाले बच्चे अतुल का ऐसा व्यवहार अपनों के प्रति देखकर, फ़िर भी पूछा---छुट्टियों में घर जाओगे ?
-----हाँ , जायेंगे---अनमने मन से जबाब दिया
-----क्या करते हो वहाँ अपने गाँव में जाकर ?
-----कुछ नहीं , मैं तो घर से ही नही निकलता , अगर अपने गाँव में घूमने भी निकलूँ तो गलियों में ही गुम जाऊँगा ,वापस घर तक भी नही पहुँच पाऊँगा ।
----- अरे ,ऐसा क्यों ?-----क्या तुम्हारा गाँव बहुत बडा है ?
-----नहीं बरसों से बाहर हूँ , अपने ही गाँव में अनजान हूँ , वहाँ कोई मुझे नही पहचानता , जब जाता हूँ तो सब ऐसे देखते हैं---जैसे जंगल से कोई जानवर घुस आया हो ।
-----ऐसा नही कहते बेटा ।( मैनें समझाते हुए कहा )
-----ऐसा ही है ,वो तो हमारी किराना दुकान है, तो मैं वहीं बैठा रहता हूँ दिनभर लोग आते -जाते रहते हैं , तो थोडा मन लगा रहता है ।
-----अच्छा बताओ , आप के लिए सब खुश तो होते होंगे कि ये शहर में पढता है ।
------हें हें हें----क्या खुश होते होंगे (हँस पडा अतुल)-----पडोसी को ही मैं और मुझे पडोसी नहीं जानता ।
-----चलो छोडो , ये बताओ ---आपके वहाँ से कौनसा शहर पास पडता है ?
----- इलाहाबाद ।
-----वाह ,तो वहाँ के बहुत से बच्चे इलाहाबाद में भी पढते होंगे ?
-----हाँ ।
-----जब आप जाते हैं तो वे भी मिलते होंगे ? तब आपस में एक- दूसरी जगहों के बारे में तो बातें होती होंगी ?
-----हाँ , आते तो वे भी हैं मगर हमारी छुट्टियों का समय अलग-अलग होने से आपस में मिल नहीं पाते हैं और वैसे भी एक-दूसरे को जानते कहाँ है ? जो पूछें ?
-----तो आप इतनी दूर यहाँ क्यों आये पढने ?, अपने पास के शहर क्यों नहीं गये ?
-----पता नहीं ,बस पापा ने यहाँ भेज दिया --- कहते हैं पास में तो रखना ही नहीं है, ठीक है ---मैने भी सोच लिया--- अब वो चाहेंगे तो भी मैं पास में कभी नही रहूँगा ।--- जॊब भी दूर ही ढूंढूगा ।-------

---------मैं चुप , निरुत्तर हो गई , ऐसा कडवा सच जानकर जिसे झुठ्लाया नही जा सकता ।

2 comments:

sanjay vyas said...

एक बच्चे के अंतर्मन में बेहद संवेदना के साथ की गयी यात्रा. और घरों का उदास करने वाला सच उजागर हुआ.

रंजना said...

balak के मन की गहन vedna और वर्तमान में thandhe padte जा रहे riston को बड़े ही संवेदनशील और प्रभावी ढंग से chitrit किया है आपने....