Tuesday, May 3, 2011

"गर्भनाल", अंक ५४ - मई २०११ , पेज नम्बर ४२...

हा हा हा.....ये शीर्षक है जो सब कुछ बता रहा है....जो कहीं और नही छपा है...मेरे लिए पहला मौका है ..सुनिए यहाँ--- 



विश्वास न हों तो देख लें---( यहाँ किसी और दिन छाप दूँगी )
ये रही लिन्क-----
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2054th.pdf 

अगर देखने जा रहे हों तो आकर बताएं..पता तो चले कितने लोग विश्वास नहीं करते मुझ पर.....

15 comments:

Smart Indian said...

बधाई!

संजय कुमार चौरसिया said...

badhai

Gopal Mishra said...

Congrats :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

गर्भनाल में छपने पर बधाई!

Smart Indian said...

मार्मिक कहानी, ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे।

संजय भास्‍कर said...

बधाई बधाई बधाई बधाई बधाई

Archana Chaoji said...

आप सबका बहुत बहुत आभार...

राज भाटिय़ा said...

नाईस नाईस बधाई जी

कविता रावत said...

गर्भनाल प्रवासी पत्रिका हिंदी साहित्य की एक बहुत अच्छी सार्थक पत्रिका है ..मैं जब समय मिलता है जरुर पढ़ती हूँ.. मुझे भी उसमें अपनी रचना छपने पर ख़ुशी हुयी ...आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ...हार्दिक शुभकामना

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

bahdiyan ji badhaiya, mithai ke liye nahi kahunga :)

सुज्ञ said...

पहले तो,बधाई! मर्मभेदती कथा !!

Avinash Chandra said...

कहानी छपने पर बधाई! मार्मिक लघुकथा।

Udan Tashtari said...

पत्रिका में छपने के लिए बहुत बहुत बधाई..वाचन सुनकर आनन्द आ गया.

मार्मिक कथा.

आपई कलम से और इसी तरह की आवाज सुनने की इच्छा है...पत्रिकाओं के माध्यम से. :)


शुभकामनाएँ.

Shashi said...

I like your blog . We wish you all the best .
shashi

Shashi said...

Liked the story . Is it a true story .