Monday, May 23, 2011

मुझे नहीं लगता ..

किसी के लिखे को बुरा कहने का दुस्साहस नहीं क़र पाती मै ,
क्योकि खुद मुझे नहीं पता कि कितना बुरा लिखती हूँ मै,
समझ नहीं आता मेरे लिखे को अच्छा कैसे कहता होगा कोई ,
क्या मुझसे भी बुरा लिखता होगा कही कोई ....

8 comments:

रश्मि प्रभा... said...

yah khoobi shabdon ki muhtaj nahi

सुज्ञ said...

इसे ही तो कहते है अच्छा लिखना!!

दूसरों की एब निकालने से पहले अन्तर्मन में झांक लेना। और सकारात्मक वचन ही कहना।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर अन्दाज़

Kailash Sharma said...

यही अहसास तो सुन्दर लेखन की प्रेरणा है..

प्रवीण पाण्डेय said...

नित विकास लाने की जिद हो बस।

Avinash Chandra said...

दौड़ना मृग का कानन-कानन भर, हेतु कस्तूरी।
देख अकारण पैर केक का रखना नृत्य से दूरी।
कोई नई, विशिष्ट, अलौकिक, या काल्पनिक प्रथा है?
विस्तार विवेचन सुधिजन जानें, मुझे नहीं लगता है।

:)

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह!
"बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्या कोय,
जब घट देखा आपना, मुझसे बुरान कोय!"

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सबकी अपनी क्षमता होती है ..कोई भी बुरानाही लिखता ..सुन्दर भाव