कुछ दिनों से बहु के साथ
हूँ रांची में उसकी नौकरी पर. आज पूरा एक महीना होने आया है घर से निकले. ये पहला
मौका है जब इतनी बेफिक्री से इतने दिनों तक घर छोड़ कर घूम रही हूँ,
शायद बेफिक्री इसलिए कि बच्चों का घर भी तो
अपना ही घर है मगर फिर भी कुछ समय में उस घर की याद सताने लगती है जहाँ हम रहते
आये हैं- जहाँ नौकरी करते हैं....जहाँ बसे होते हैं. खैर, कुछ दिनों में लौट जाना
होगा, अभी तो बहु के पास ही हूँ.
कल यहाँ मुलाक़ात हुई
शांता मौसी से ...शांता मौसी बहु के घर बर्तन व घर की सफाई करने आती है ....
कल जब शांता मौसी दोपहर
में आई तो मैंने उनसे पूछा कि मौसी चाय पियेंगी आप ? बनाऊं ?
वे कहने लगी - काहे ,आप खामखां परेशान होंगी ,हम नहीं पियेंगे ...
जब मैने मौसी से कहा आज
मेरा मन कर रहा है चाय पीने का और अकेले अच्छा नहीं लगता पीना ,तो तुरंत बोली तब ठीक है बनाइये तो ..हम भी पी लेते हैं ...
मै चाय बनाने लगी ,चाय तो महज एक बहाना था ,मेरा समय नहीं कट रहा था
...मौसी बैठ गई और बतियाने लगी- बतियाना तो क्या यूँ कहें कि बताने लगी कि उसके घर
भी मेहमान आये हुए है ...बहू की बहन उसकी सास,उसके बच्चे वगैरह
....
आगे बोली बड़ी मुश्किल से
बड़ा किया बच्चों को मैने....
मैने पूछा -कितने बच्चे
हैं?
-अभी दो...एक बेटी और एक
बेटा ...बेटी की शादी तो उसके बाबू जी के रहते ही हो गई थी और बेटे की बाद में हुई
..
बहू भी बहुत अच्छी है एक
स्कूल में जाती है ...सविता नाम है ,माता-पिता कोई नही है
उसके ...
--फ़िर?
एक मैडम हैं बोकारो में
..डोरे मेडम...उन्होंने ही उसे पाला है,बचपन से. पढ़ाया-लिखाया
भी और उसकी शादी भी उन्होंने ही की मेरे बेटे से ...मेरा लड़का गया था एक रिश्ते
में वहाँ देखी थी उसको, फ़िर मुझे संदेश भिजवाया कि मैं अपनी बेटी आपको
सौंपना चाहती हूं ,मैंने मना कर दिया-कहा मेरा बेटा ज्यादा पढ़ा
नहीं है बस काम सीख गया है,आप बहुत बड़े है संबंध
करना ठीक नही होगा.
मगर कुछ दिन बाद मेरे घर
यहाँ आई और कहा बड़ा-छोटा कोई नहीं होता ..मुझे आपका बेटा पसन्द है, मेरी बेटी आपके
यहाँ खुश रहेगी बस हाँ कर दिजिये मै बहुत
अच्छे से करूँगी शादी...
और तय हो गया, हम बरात लेकर गये ,बहुत धूम-धाम से की शादी ,मुर्गा,मछली सब किया घर का सामान,कपड़ा-लत्ता सब
...सब बिलकुल माँ के जैसे किया............
उस दिन समय की कमी के
चलते मौसी चली गई...........मगर लगा कि न जाने और कितना कुछ बतियाना चाहती थी
मुझसे अभी.
दूसरे दिन फ़िर मौसी आई
काम पर ..मैं अपने काम में लगी थी ....आज मौसी ने ही बात शुरू की ...मुझे भी जैसे
इन्तजार ही था शेष कहानी सुनने का.......
मै चुपचाप सुन रही थी
...पूछा- क्या हुआ था इनके बाबू जी को ?
मौसी बताने लगी ---उन्हें
आँखों से दिखता नहीं था ...(मैं सोच रही थी ऐसा तो उम्र के साथ होता ही है इससे
जान जाने का क्या सम्बन्ध?)...मौसी ने जारी रखा-----कोई
काम होता नहीं था मेरी बहन ले कर गई उसके घर कि मन बहला रहेगा. वहाँ कुएँ मे गिर
गए ..जान चली गई ....
उफ़्फ़!! मैं इसके अलावा कुछ कह न पाई ...
पूछा- पता कैसे चला?
-- इधर -उधर खोजा दो दिन
बाद जब शरीर उपर आया तब......
ओह!!
आगे कहने लगी बच्चे तो बहुत
छोटे ही थे ..मगर फिर भी बिटिया की शादी कर दी थी छुटपन में ही...बस बेटा बच रहा
था सो धर घर काम कर उसे एलेक्ट्रिक का काम सीखवा दिया...शादी कर दी, बहू भी एक स्कूल में काम करती है. अच्छा खासा चल गई है उनकी गृहस्थी. घर में
पिछले साल ही बहू ने कहा कि बैठक ठीक नहीं है तो बेटे
ने सोफ़ा लाकर दिया और अब इस बार उन्होंने
फ़्रीज़ भी ले लिया है...एक पोती भी है
उसे भी अंग्रेजी स्कूल में भर्ती किया है ,अच्छा पढ़ रही है
वो....
बताते बताते उसके चेहरे
पर जहाँ जीत के भाव थे, उसी के बीच मुझे एक हार की लकीर सी भी न जाने क्यूँ दिखी.
मुस्कराहट के बीच मानो गम की एक परत....शायद इसे ही अनुभव कहते हों..
आगे बताना चाहा
..बोली---दीदी आपसे कल बता नहीं पाई थी ..पर आप मुझे अपनी सी लगीं सो मन कहता है
कि सब बता ही दूँ...शायद मन हल्का हो जाये...असल में मेरा एक और बेटा था.....फिर न
जाने क्यूँ..वो चुप हो गई...आँख नम सी दिखी उसकी.
मैं मौसी के चेहरे को
पढ़ने की कोशिश कर रही थी...गहरी उदासी थी चेहरे पर ....लग रहा था अब भी कुछ बाकी
है जानने को .........समय नहीं था ..उसे अपने काम पर जाना था ..............कुछ
कहने की कोशिश करते-करते ही मौसी चली गई ..............और मैं सोचती रही कितनी
मेहनत की होगी मौसी ने...
न जाने क्यूँ मैं मौसी की
खुद से तुलना करने लगी ...
कितनी शान्ति से सब कुछ सहा
होगा जो आज अपने अस्तित्व को बचा बैठी है इस रुप में मुझसे अपनी कहानी कहने
को...जस नाम तस भाव इस अवसाद भरी जिन्दगी में...............बेकार ही लगा कहीं पढ़ा
हुआ--- "नाम में कुछ नहीं".......
शाम को मेरी बहू ने आते
ही पूछा आज आप अकेले बोर तो नहीं हुई ?
मैनें कहा - नहीं शांता मौसी
आई थी न दोपहर कुछ देर !! उसे चाय पिलाई और कुछ बातें की ... वो अपने बारे में बता
रही थी ...कितना कुछ...उसी में दिन निकल गया...
--- क्या बताया ?
--- यही कि उसके दो बच्चे
हैं, बेटी की शादी बहुत पहले ही हो गई और अब बेटे की भी हो चुकी
है,बहू स्कूल में काम करती है,और एक पोता है जो
अच्छॆ इंग्लिश स्कूल में पढ़ रहा है ..
बेटी की बेटी याने उसकी
नातिन इस बरस अब १० की परीक्षा देगी..फिर कहीं अच्छा घर परिवार देख उसे भी ब्याह
देंगे.
--- बस इतना ही कि कुछ और
भी बताया उसने..?
अरे हाँ.. कितना कुछ तो और बता रही थी कि एक और बेटा भी था.पर
मेरी समझ में नहीं आया...बच्चे तो दो ही बताये थे उसने पहले रोज...
--- ह्म्म्म, माँ.... उसका एक और बेटा था ,सबसे बड़ा....जिसने लव
मेरिज कर ली थी ...लेकिन लड़की के घर वालों को ये रिश्ता पसन्द नहीं था...वे उच्च
जाति के थे और रसूखदार अमीर भी थे....उन्होंने समझौता करने के बहाने बेटे-बहू
दोनों को बुलाने का दिखावा किया, कि वे मान
गये है ... वे सीधे-साधे बेचारे उनकी बात को सही मान बैठे.....खुशी-खुशी बेटी अपने
घर गई अपने पति के साथ...अगर बेटा फिर वहाँ से वो वापस ही नहीं आया ..कुछ दिन बाद अखबार
में खबर आई लावारिस लाश की- कुछ खबरों के चलते उसने जाकर पहचान की
................लोगों मे बातें भी होती
रही कि --उन्होंने धोखे से दामाद को मरवा दिया और देह भी जंगल में ले जाकर फिंकवा
दी थी जो बरामद हुई और वो पहचान पाई अपने मृत बेटे को...लेकिन कुछ सच-सच पता नहीं
चला.......तब बहू को बच्चा होने वाला था ...वे आकर बच्चे को शांति मौसी को सौंप
गये थे और अपनी लड़की की दूसरी शादी करवा दी उन्होंने............ लेकिन निमोनिया
हो जाने के कारण बच्चा बच न सका .....एक मात्र निशानी उस बेटे की..उसी में जा
मिली...रह गया बस एक यादों का साया जिसे भूलो तो मुश्किल..याद करो तो
मुश्किल....जीवन कितना कठिन सा लगा उसे फिर एक बार...
और मैं उसे सुन- अवाक!!
सन्न!! शून्य में ताकती...कितना निष्ठुर है यह समय..वो परम पिता...आज पहली बार
मुझे लगा कि मैने तो क्या खाक कठिन समय देखा....एक बार टूटी...और यह शान्ता....बार-बार टूट कर भी कितनी स्थिर बनी है...कम से कम अपने गुजर बरस को ही सही...
अगले दिन मुझे वापस आना
था, शान्ती मौसी थोड़ी जल्दी आ गई....बोली दीदी अब कब आयेंगी आप? जल्दी ही आना, अभी तो बात भी पूरी नहीं हुई....
जाने अब और क्या कहना
बाकि है मौसी को...........जाने और क्या सुनना बाकी है इन कानों को..आज मुझे अपनी
जिन्दगी से शिकायत न जाने कितनी कम हो गई सी लगती हैं....मैं एक बार फिर आश्वस्त
हो चली हूँ ईश्वर के विधान से...
जिन्दा रहने को बहुतेरे
कारण देता है और खुश रहने को वातावरण...
अगले साल फ़िर जाउंगी मैं
बहु के पास...सुनूँगी शांता मौसी की दिल की आवाज़...शायद उसे भी रहे इन्तजार मेरा
.........
सुना है-------- दुख दुख
से बात करता है...
अपनापन ......खुद अपनेपन को
परखता है!!
-अर्चना