Sunday, October 20, 2013

बेचैनी


नींद कहाँ इन आँखों में
अब खौफ है इनमें सपनों का
क्या दोष लगाएँ दुश्मन पे
अब खौफ है उनमें अपनों का
रिश्ते - नाते सब झूठे हैं
रहा साथ सदा बेगानों का
मीठी बातों में जहर भरा
जाने कितने अफ़सानों का......

5 comments:

Shekhar Suman said...

ये क्या है ??? क्यूँ है ??

संजय भास्‍कर said...

क्या ऐसा होता है सच में ?

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

प्रवीण पाण्डेय said...

मन में भय का महल बनायें,
भागे फिरते हर द्वारे हम।

वाणी गीत said...

दुश्मन के वार सामने और मित्र हो पीठ पीछे तो बेचैनी स्वाभाविक है !