Thursday, April 20, 2017

अंगूठा




कभी अंदर 
कभी बाहर 
अंगूठा होता है- हस्ताक्षर 

कभी दर्पण 
कभी अर्पण 
अंगूठे में होता है- समर्पण 

अंगूठा होता है- एकलव्य 
कभी श्रव्य 
कभी द्रव्य 
कभी भव्य 


अंगूठे से बनता है - कोई विशेष 
तो कोई 
रहता है शेष। .. 

अंगूठा करता है-
किसान ,लेखक के कर्म 
समझता है -उनका मर्म 


अंगूठा होता है-
उँगलियों की जान 
हाथों की शान 
कभी अपमान 
कभी सम्मान 

और अब अंगूठा ही है -
आपकी 
मेरी,
सबकी पहचान !


-अर्चना 


3 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "काम की बात - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कविता रावत said...

अब अँगूठे में है सबकी कुंडली
बहुत सुन्दर

प्रतिभा सक्सेना said...

बहु आयामी हो गया है आज तो अँगूठा.