Friday, February 27, 2009

किसका दोष ?

आज जो मै लिखने जा रही हूँ , मुझे नही पता ,कि वो लिखना चाहिए या नही ,मगर मैंने ये देखा है ,और मनकह रहा है कि लिख दूँ| मै किसी की भावना को आहत नही करना चाहती, लेकिन एक तत्थ्य है जो सबकेसामने लाना चाहती हूँ --------
ये कहानी है "विनी" नाम की एक प्यारी -सी बच्ची की | बात उतनी पुरानी है , जब विनी के माता -पिता काजन्म भी नही हुआ था | पहले पिता से शुरू करें ----
दो बहनों के बाद जन्म हुआ था , विनी के पिता का | सब बहुत खुश थे| भरे -पूरे परिवार और बड़े ही खुशनुमा माहौल में उनका लालन -पालन हुआ | विनी के दादा-दादी अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करते , जैसा कि अमूमन हर माता -पिता करते हैं | दोनों बहनें भाई को बहुत प्यार करती | धीरे -धीरे समय बीता , जवान हुए और पढ़लिख कर समझदार भी |
इसी तरह विनी की माँ का जन्म पहली संतान के रूप में हुआ, बेटी पाकर उसके माता -पिता भी बहुत खुश हुए| समय बीतने पर विनी की माँ को एक छोटे भाई का साथ भी मिला | किशोरावस्था में कदम रखते ही विनी कीमाँ बहुत खुबसूरत लगने लगी| पढ़ाई ख़त्म हुई |
यहाँ ये बता दूँ कि जितने प्यार से विनी के पिता का लालन -पालन हुआ , उतने ही प्यार से विनी की माँ का भी
|
फ़िर एक दिन विनी के दादा-दादी , बुआ , नाना-नानी , मामा , की मर्जी से विनी के पिता माँ की शादी हो गई
सब बहुत ही खुश थे ----परिवार , रिश्तेदार , समाज | थोड़े समय बाद सबकी खुशी दुगनी हो गई , जब "विनी" का जन्म हुआ | परिवार के सब लोग बहुत ही खुश थे ,विनी है ही इतनी प्यारी बच्ची | विनी थोडी बड़ी हुई , नर्सरी में उसका एडमिशन करवा दिया गया ,वो स्कूल जाने लगी |
समय अपनी गति से बीत रहा था , कि तभी एक घटना घटी , जिसके बारे में किसी ने सपनें में भी नही सोचाथा-- ------
| ---विनी के पिता ऑफिस के काम से एक हफ्ते के लिए बाहर गए, बहुत सारे वादे विनी और उसकीमाँ से करके | वहाँ सकुशल पहुँच कर उन्होंने , विनी , उसकी माँ , विनी के दादा-दादी , मामा आदि लोगो सेफोन पर बात भी की | सब बहुत खुश थे | अभी एक दिन ही बीता था | दूसरे ही दिन वहाँ से विनी के पिता केसाथियों का फोन , विनी के पिता के नजदीकी रिश्तेदार के पास आया | सूचना मिली कि विनी के पिता केसाथ एक दुर्घटना घट गई है , जिसमें उन्हें बचाया नही जा सका | जिसने भी सुना उसके होश उड़ गए |
परिवार में हुई इस असामयिक मौत ने सबको विचारशून्य कर दिया | किसी के समझ में नहीं रहा था किकिसे धीरज दें , और कैसे ? उस दिन मै भी वहाँ थी| घर में इतने सारे लोगों , जिनमें से कई चेहरे अनजान थे , के अचानक जाने से विनी को कुछ समझ नही रहा था कि क्या हो रहा है| कुछ जाने -पहचाने चेहरे उसेगोदी में उठाते, कोई चोकलेट दे रहा था , तो कोई खाने कि अन्य चीज | किसी को वो हां कहती तो किसी को नाउसकी आँखे अजनबियों कि भीड़ में अपनी माँ को खोज रही थी , उसे नहीं पता था कि उसकी माँ कोअस्पताल ले जाया गया है , ताकि वो इस सदमे को सह सके | आख़िर आंसुओं कि अनगिनत धाराओं औररुदन कि असह्य वेदना के साथ , विनी के पिता का अन्तिम संस्कार कर दिया गया |
सब लोग अपने-अपने घर चले गए | अति नजदीकी रिश्तेदार उनके घर रुके | इसके बाद ठहर - सी गई जिंदगीमें एक भूचाल -सा आना बाकी था | १५ दिन बीतते -बीतते घर वालों को पता चला कि विनी के साथ खेलने केलिए , उसकी माँ एक और बेबी को लाने वाली है | विनी कि माँ कि स्थिति को बयान करने के लिए मेरे पासकोई शब्द नहीं है | हर कोई उसका भला चाहता था , हर कोई उसके दुःख को कम करना चाहता था , ऐसीविकट घड़ी में विनी के नाना-नानी को अपनी बेटी के भविष्य कि चिंता होना स्वाभाविक है , वे सोच रहे थे किइतनी कम उम्र में उनकी बेटी अकेले दो बच्चों को कैसे पालेगी , उन्होंने एक बहुत ही कठोर निर्णय सुनायाविनी की माँ नए बच्चे को जन्म दे , ( वे यह भी सोच रहे थे कि भविष्य में हम अपनी बेटी कीदूसरी शादी करवा देंगे ) अब दादा-दादी की बारी थी - निर्णय देने की , वे अपने बेटे की आखरी निशानी कोदुनिया में लाना चाहते थे , उन्हें एक आशा भी थी, कि शायद विनी को भाई मिल जाए ( अपनी बहू को बेटीबनाकर वे भी भविष्य में उसकी शादी करने से इंकार नही कर रहे थे ) आख़िर विनी की नानी , विनी की माँ कोअपने साथ ले गई और नए बच्चे को इस दुनिया में आने से रोक दिया गया | मीठे और मधुर रिश्तों में कड़वाहट गई |
| -------- इसमें किसी को भी दोषी ठहराना ठीक नही होगा लेकिन " सही निर्णय का सही समय " पर लिया जाना जरुरी है , भावुकता या जल्दबाजी में लिए गए एक ग़लत निर्णय से संबंधो में दरार आना स्वाभाविक है , वैसे भी ये ऐसा संवेदनशील क्षण होता है , जहां व्यक्ति अपने -आप को सबसे अधिक लाचार पाता है | अब विनी के बारे में निर्णय होना बाकी था इस बार दादी की बात मानी गई - विनीअपने दादा-दादी के पास रह गई , और विनी की माँ को उसकी नानी अपने घर ले गई |
इस हादसे ने विनी को उसके पापा के साथ ही माँ से भी अलग कर दिया | उसके चेहरे कि मुस्कराहट कहीं खोगई| इस बीच एक बार विनी की दादी की ख़बर आई की वे विनी को मेरे शहर में लेकर आई है तो अपने आप कोरोक सकी मै | विनी , जिनके यहाँ रुकी थी, मै वहाँ गई उसकी दादी से इजाजत लेकर उससे घूमने चलने कोपूछा ,मेरे पास स्कूटर देखकर (शायद वो बहुत दिनों से उस पर बैठकर घूमने नही जा पाई थी )अपने आप कोरोक नही पाई ,मुझसे अनजान होते हुए भी ,मेरे साथ चलने को राजी हो गई सबसे पहले झूला,फ़िर बुढीया केबाल ,फ़िर फुग्गा ,फ़िर आइसक्रीम ,खिलौने, कपडे सब कुछ करते-करते घंटे कहाँ बीत गए पता ही नही चलामगर थोडी -थोडी देर में मुझसे पूछती रहती थी कि- अपने वापस पहुँचने तक दादी रुकेगी ? मै उसके डर कोसमझ रही थी |
आज इस हादसे को साल होने को आए है ,विनी कि माँ कभी-कभी विनी के पास आने लगी है , शायद समयसब जख्मो को भर देता है फ़िर भी एक डर बना हुआ है कि जब विनी बड़ी होगी ,रिश्तो कि अहमियत कोसमझेगी तब कितने सवाल उसके जेहन में उठेंगे और क्या कभी कोई उसके सवालो के जबाब उसे दे पायेगा ? दादा पहले ही रिटायर हो चुके थे , आजीविका के लिए घर में ही किराना दुकान चलाते है , विनी से मै बहुतदिनों से नही मिली हूँ ,पर चाहती हूँ , जब भी मिलूँ वो सिर्फ़ मुस्कराए बल्कि खिलखिलाते हुए मुझसे मिले |
मुद्दे की बात ---एक बात जो आमतौर पर देखी जाती है कि ,ऐसे मौकों पर ( जब किसी परिवार में किसी कीअसमय म्रत्यु हो जाती है , या कोई परिजन किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाता है |) मुफ्त की सलाह देनेवालो की भरमार हो जाती है , जो सिर्फ़ शोक जताने आते है और अपनी राय सौप जाते है |
और दूसरी अहम् बात--- ऐसे मौकों पर ही घर के बुजुर्गो के धैर्य ,और अनुभव की परीक्षा होती है |


Tuesday, February 24, 2009

समझा क्या ?????

ईश्वर ने हर किसी ,को कोई काम दिया है ,
अगर काम ठीक से किया, तो फ़िर नाम दिया है |
पेडो से कहा है -देना ,
पक्षियों से -गाना |
पर्वत को कहा- खड़े रहना,
नदियों को कहा- बहना |
चाँद को कहा- ठंडक देना ,
सूरज को - चमकना |
हवा से कहा- संभलकर चलना,
बादल से - बरसना ,
धरती से कहा -सबको समेट लेना ,
आसमान से -ढकना|
फूलो को कहा- सुगंध बिखेरना ,
बच्चों को कहा- हँसना |
नर को कहा-संभालना ,
नारी को कहा - सहना |
मैंने अब तक ऐसा समझा, है तुझे ये बताना ,
अगर तू इसे समझा हो तो ,औरो को भी बताना |
चप्पे-चप्पे पर रहने वाले का नाम लिखा है ,
और दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा है|
खुदा ने अपनी हर एक चीज पर ,
बन्दे के लिए कोई न कोई पैगाम लिखा है |

Sunday, February 22, 2009

सबकी माँ

तीन----
सबकी माँ,
हाँ भाई हाँ,
माँ तो माँ,
बोले कभी - ना,
दिल पुकारे गा-
उई-माँ,उई-माँ,
मन को गयी भा,
उनको भी दो ला,
जिनकी ना हो माँ,
खुश हों वो भी पा,
जीवन भर करे--हा,हा,हा।

Friday, February 20, 2009

सत्य है !!!!!

एक जैसा दुःख मेरा तुम्हारा ,
मैंने खोया चाँद, तुमने तारा ,
मैंने खोयी खुशी ,तुमने हँसी ,
फ़िर भी हम दोनों को जीना है,
अपने आंसुओ को अकेले पीना है ,
यहाँ पर मै तेरे साथ , तू मेरे साथ है,
बाकी सब ऊपरवाले के हाथ है ,
वहां किसी के साथ कोई दगा नही होता ,
क्योकि ,ईश्वर और मौत का कोई सगा नही होता|

अनजाने मे

अनजाने मे ही सही, मगर दो दिन पहले ही मेरे साथ ऐसा हादसा हुआ-स्कूल मे ड्राइंग कॊपी न लाने के कारणमुझे कुछ बच्चों (४थी क्लास) के घर फ़ोन करके बताना था, उनमें से एक के बारे में मुझे पहले ही बताया गयाथा कि ये अपने मामा के यहाँ रहता है,और इसके मामा कभी फ़ोन ही नही उठाते।मै फ़ोन लगाने की कोशीशकरते हुए (घंटी जा रही थी) उस बच्चे से सवाल भी करते जा रही थी वह वार्तालाप --
-मामा के यहाँ रहते हो?
-हाँ
-कहाँ?
-खजराना
-मामा क्या करते है?
-मालूम नही
-और पापा कहाँ रहते है?
-खजराना
-अरे,दोनो वहीं रहते है तो आप पापा के पास क्यो नहीं रहते?पापा का घर दूर है क्या ?(मुझे लगा था स्कूल दूरपडता होगा)
-नहीं,पास में।
-फ़िर,बोलो पापा के पास क्यो नही रहते हॊ?
इतने मे किसी बच्चे ने कहा मेडम-ये गाली भी बहुत देता है।
-क्यों, आप गाली देते हो?
-कभी-कभी
-क्यों?
बच्चा चुप रहा।
-आपके घर मे कोई गाली देता है?
बच्चे ने हाँ मे सिर हिलाया।
-कौन?
-मामा
-मै अवाक सी उसकी ओर देखती हुई बोली-किसको देते है?
-सबको
-मामा के बच्चे है?
-हाँ
-आपने बताया नही,पापा के पास क्यों नही रहते हो?
बच्चा सहमा-सा मुझे देख रहा था,थोडा रुककर बोला हमारी मम्मी को पापा ने तलाक दे दिया है।
जबाब सुनते ही मै सन्न रह गयी,उस बच्चे से कुछ न कह सकी,सिर्फ़ इतना ही कहा गाली देना बुरी बात है ना, आपको नही देना चहिये।आगे से कभी किसी को गाली मत देना और ड्राईंग कॊपी लेकर आना।फ़ोन की घंटीअब भी जा रही थी।
मुद्दे की बात--"समीर जी ने अपने ब्लोग पर लिखा है-लोग बोलने के पहले अगर वाणी नियंत्रित करें,विचारोंको यूं ही न बाहर निकाल दें,जरा अन्य पहलू पर भी नजर डालें,तो शायद ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता हैकि कोई आहत न हो,न किसी के दिमाग पर ऐसी बात अंकित हो जाए जो जीवन भर पोछे से न पूछे।"
कितनी सही है- यहाँ बच्चे के दिमाग पर ऐसी बात अंकित है जो जीवन भर न पोछी जा सकेगी।और मेरी कहीबात से मै खुद इतनी आहत हूं कि शायद जिन्दगी भर उस बच्चे को भुला न पाऊंगी।

Thursday, February 19, 2009

क्या पढ़े ???

आजकल मैंने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है |बहुत से कारण है अखबार पढ़ने के मसलन---
. पढ़ने लायक पेज एक या आधा ही होता है |
.मरने या मारने की ख़बर पहले प्रष्ठ पर पढ़ कर मन व्यथित हो जाता है|
.दुर्घटनाओ के फोटो दिन भर आखों के सामने से हटते नही |
.एक पेज पढ़ने के लिए - पेज कम से कम महीने (रद्दी बेचने तक)संभालकर रखने पड़ते है|
.जिस ख़बर की पूरी-पूरी जानकारी चाहिए होती है वो ठंडे बस्ते में चली जाती है |
.विज्ञापनों के भी हाल ऐसे होते है की अगर बच्चो के सामने पढ़े तो उनके पूछे कुछ सवालो के जबाब नही दे पाते|
(शीर्षक लिखने वाली थी मगर लिखने में भी अच्छा नही लग रहा है ,ख़ुद ही पढ़ लीजियेगा )
.कोई नेता या पार्टी वादा कर रही होती है, तो कोई दूसरो को उनके किए वादों की याद दिलाती है|
.सुबह पेपर चाय के साथ पढने का टाइम नही रहता,और शाम तक ख़बर बासी हो जाती है|
.खेलप्रष्ठ का मजा दूरदर्शन ने कम कर दिया है| (लाइव टेलीकास्ट के कारण)
१०.यहाँ लिखने में मजा आने लगा है |

Tuesday, February 17, 2009

ये नेता

आजकल इंदौर में .बी .रोड की चौडाई बढ़ाने काम काम चल रहा है ,सड़क के एक छोटे से हिस्से को जिसतरह घुमा -फिरा कर बनाया गया है ,उसकी पीड़ा से उभरी है ये कविता -------
समझ में नही आता जो लोग जोर से चिल्लाते है,
वो नेता क्यों बन जाते है?,
या फ़िर जो सब कुछ खा कर पचा लेते है,
वो, नेता बन जाते है?,
विरोध के स्वर हमेशा क्यों दबा दिए जाते है?,
ये नेता लोग अपनी करनी पर क्यों नही पछताते है?,
इन्हे अपनी गलती पर शर्म क्यों नही आती है?,
क्या हया इनके घर कभी नही जाती है?,
क्या ये अपने बच्चों के सवालो के जबाब दे पाते है?--
कि पापा जब सीधा रास्ता कम दूरी का होता है तो,
आप लोग सड़के टेड़ी-मेढ़ी क्यों बनवाते है?,
जिस पर आप तो अपने लाव-लश्कर के साथ सरपट निकल जाते है ,
और बेचारे सीधे-सादे लोग जाम में फंस जाते है,
मोडो पर उलझ कर ही रह जाते है |
मेरे हिसाब से हर नेता को एक मजदूर के परिवार कि देख-रेख का जिम्मा सौप देना चाहिए ,
और उसने मजदूर के बच्चों को लायक डॉक्टर ,या इंजिनियर नही बनाया तो ------
नेता को मजदूर बना देना चाहिए |


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