न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
सूरज, की तरह स्थिर रहो सबके जीवन में नदी की तरह बह निकलो सबके जीवन से
पेड़ जैसे छाया दो सबको जीवन में धरा सा बसेरा दो सबको अपने मन में ...
बहुत खूब
धन्यवाद
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2 comments:
बहुत खूब
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