न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
सूरज, की तरह स्थिर रहो सबके जीवन में नदी की तरह बह निकलो सबके जीवन से
पेड़ जैसे छाया दो सबको जीवन में धरा सा बसेरा दो सबको अपने मन में ...
बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।-- आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद
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3 comments:
बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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