Tuesday, December 14, 2010

गीत फ़िरदौस का --स्वर मेरा--अर्चना चावजी

 एक गीत फ़िरदौस की डायरी से..



तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
राधा कुंज भवन में जैसे
सीता खड़ी हुई उपवन में
खड़ी हुई थी सदियों से मैं
थाल सजाकर मन-आंगन में
जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
तड़प रही थी मन की मीरा
महा मिलन के जल की प्यासी
प्रीतम तुम ही मेरे काबा
मेरी मथुरा, मेरी काशी
छुआ तुम्हारा हाथ, हथेली कल्प वृक्ष का पात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
रोम-रोम में होंठ तुम्हारे
टांक गए अनबूझ कहानी
तू मेरे गोकुल का कान्हा
मैं हूं तेरी राधा रानी
देह हुई वृंदावन, मन में सपनों की बरसात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
सोने जैसे दिवस हो गए
लगती हैं चांदी-सी रातें
सपने सूरज जैसे चमके
चन्दन वन-सी महकी रातें
मरना अब आसान, ज़िन्दगी प्यारी-सी सौगात ही गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
-फ़िरदौस ख़ान

12 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

अर्चना जी
आपने हमारे इस गीत को अपनी मधुर आवाज़ से और भी दिलकश बना दिया है...
हम आपके तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...

बाल भवन जबलपुर said...

adabhut hai Chhutakee kaa geet aapake sur ne geet kaa shrangar kar diya

Anonymous said...

गीत और स्वर बहुत सुन्दर है!

प्रवीण पाण्डेय said...

इतनी उत्कृष्ट जुगलबन्दी के लिये अतिशय बधाइयाँ।

दीपक 'मशाल' said...

Geet pahle hi itna khoobsoorat tha ki sanjone yogya lag raha tha.. madhur aawaz ne iske saath poora nyaay kiya aur karnpriya bhee bana diya. Badhai Firdaus ji

Creative Manch said...

बहुत सुन्दर !

संजय कुमार चौरसिया said...

dipak mashal ji se sahmat hoon

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय अर्चना जी
नमस्कार !
..............बहुत खूब, लाजबाब !

Udan Tashtari said...

बहुत उत्तम!

vivek bhardwaj said...

nice

Nibha choudhary said...

यहाँ तक पहुचने में मुझे काफी वक़्त लग गया ...लेकिन आपकी आवाज़ में ये मधुर गीत सुन के आनंद से परिपूर्ण हुई.. दिल से धन्यवाद :)
और आपसे बिना इज़ाज़त ये गीत ले अपने पास रख ली ... :)

ज्ञान चक्षु said...

Really koi jawab nahi hai is rachna ke liye. .Bahut sunder kaha jay to bhi kam hai.