Wednesday, December 15, 2010

>>>>>दीपक "मशाल"------पता नहीं क्या क्या

आज दीपक"मशाल"की एक गज़ल मेरी आवाज में----------उनके ब्लॉग की उदास फ़ोटो को समर्पित--

"मेरे घर की दीवालों ने बातें करना सीख लिया है ---यहाँ पूरी गज़ल पढ़ें

 

और ये कविता लिखी है चित्र देखने के बाद

शायद आप नहीं जानते वह गाते भी अच्छा है -----( गिफ़्ट दिया था मैनें --हा हा हा )-यहाँ पढे



एक गज़ल पहले भी सुन चुके हैं आप यहाँ
और हाँ पेंटींग भी करते है --देखियेगा उनके ब्लॉग मसि-कागद पर--सबसे  अंत में--

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मेरे घर की दीवारें तो अभी तक मेरा मुँह ताकती हैं। बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गायन।

बाल भवन जबलपुर said...

वाह दीपक जी
कमाल की कल्पना
और ममतामयी के सुर जो लगे सफ़ल हो गये आप

फ़िरदौस ख़ान said...

दीपक जी
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है... एक-एक लफ़्ज़ बेहद उम्दा....

हमेशा की तरह मधुर आवाज़...अर्चना जी को भी बधाई

दीपक 'मशाल' said...

Aap to hamesha achchha hi gaatee hain par is fate baans ka majaak kyon banwa diya???? :(

Archana Chaoji said...

@दीपक
स्नेहाशीष,

गुस्सा नहीं करते,,,,,अगर बुरा लगा हो तो कान पकड़ के sorry.......हर समय सुख नहीं मिलते....हमें सुख दुख दोनों मे सम रहना चाहिये...........मै तो बस ये बताना चाह रही हूँ कि बिना देखे/एक दूसरे को मिले,भी बहुत कुछ किया जा सकता है ............बस एक प्रयास की जरूरत होती है और मन में विश्वास कि कुछ करना है........

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मेरी दीपक भाई से बात हुई थी उनकी आवाज़ तो बहुत मिट्ठी है .

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मेरी दीपक भाई से बात हुई थी उनकी आवाज़ तो बहुत मिट्ठी है .

दीपक 'मशाल' said...

अरे नहीं.. कोई मासी से गुस्सा होता है क्या भला. मेरा कहने का मतलब था कि कि आपकी आवाज़ के साथ ये ऐसा लग रहा है जैसे मखमली कुर्ते में टाट का पैबंद.. :)
@धीरू भाई
मुझे याद करना पड़ेगा उस दिन मैंने क्या खाया था जब आपसे बात हुई थी.. अब से वही रोज़ खाऊंगा. :)
प्रवीण जी, गिरीश जी और फिरदौस जी.. आपका स्नेह देख ख़ुशी हुई..

Anonymous said...

दोनों गजल बहुत बढ़िया है!
--
हमें भी गाने की प्रेरणा मिली!