सुबह-सुबह गिरती है जब ओस
भीग जाता है मन
देखकर अलसाते फूल
उनींदी आँखों से दिखाता है सूरज
एक सपनीला नज़ारा
भीग जाता है मन
देखकर अलसाते फूल
उनींदी आँखों से दिखाता है सूरज
एक सपनीला नज़ारा
धुंध में छिपा लगता है 
प्रकृति का कण-कण प्यारा 
सिहरन देती चलती है 
मॉर्निंग वॉक करती ठंडी हवा  
उम्र कई साल पीछे जा 
हो जाती है नटखट- जवां 
अलाव से उठता धुंआ 
रगड़ती हथेलियां 
गर्माता खून 
और दुबके परिंदे देख मन भरता है  उड़ान 
और लांघता है लम्बा पुल
यादों का
पार होते ही गलियारा दूसरी ओर दिखता है फिर एक पुराना
सपनीला नजारा
और लांघता है लम्बा पुल
यादों का
पार होते ही गलियारा दूसरी ओर दिखता है फिर एक पुराना
सपनीला नजारा
फिर गिरती है ओस 
इस बार कोर से 
उनींदी आँखों की 
भीग जाता है मन 
सुबह-सुबह ..
 
6 comments:
कोमल, प्यारे, सुख देते, कुछ कहते एहसास..
सर्द मौसम और एहसासों की गर्मी.. जाड़े की हक़ीक़त और यादों के सपने..
और आख़िर में गुलज़ार सा'ब का एक शे'र:
कौन पथरा गया है आँखों में,
बर्फ पलकों पे क्यों जमी सी है!!
हर सुबह नया जीवन दे जाती है।
यादो के झरोखे से झाँकता मन पखेरू
खूबसूरत एहसास
बहुत ही सुन्दर भाव....
अनु
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