Sunday, October 11, 2015

होना ही था

जब पेड़ कटें नदियाँ सूखे 
तालाबों को तो गारा होना ही था 
और महके माटी ज्यों चन्दन
मन को तो पारा होना ही था ....



अपनों ने ही दी जब घुड़की 
ध्रुव को तो तारा होना ही था 
और करनी ही थी नटखट लीला 
कान्हा को तो कारा होना ही था ....


यादों की बंसी जब गूँजी 
अंसुअन को तो खारा होना ही था
तूने थाम रखी जब मन की डोरी 
अरे! मोहे तो थारा होना ही था ....


लाज न हो आँखों में जब 
आँचल को तो झारा होना ही था 
कीमत ही नहीं जब पशुधन की 
धन लक्ष्मी को चारा होना ही था .....

-अर्चना 

6 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! क्या अंदाज है!!!

Anup said...

इतनी प्यारी गजल लिख लेती है जो
उसे एक दिन मित्र हमारा होना ही था।

Anup said...

इतनी प्यारी गजल लिख लेती है जो
उसे एक दिन मित्र हमारा होना ही था।

Anup said...

इतनी प्यारी गजल लिख लेती है जो
उसे एक दिन मित्र हमारा होना ही था।

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रेरक रचना

जमशेद आज़मी said...

बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।