Sunday, October 18, 2015

विश्वास की कोंपल

आज तक ऐसा नही हुआ ... वो अपना हेलमेट ऑफिस में भूल आया ... और ये बात उसे आधे रास्ते आकर याद आई ..... अब ? क्या करे ? ट्रेफिक में वापिस जाए, और अब तक ट्रेफिक सिपाही की जो नज़र न पड़ी , वो उस पर पड़  गई तो ....नहीं ,नहीं ...माँ चिंता करेगी घर  पर ....... वैसे ही लेट  निकला था आज वापसी में ....तो .....
उफ़्फ़! ऐसा कैसे हो गया सोचते हुए भी ये तय कर लिया था की घर ही चला जाए ,कल ऑफिस से ले लेगा हेलमेट .....
मगर कल जाएगा कैसे ......? ओह ॥यार शिट!....... बिना हेलमेट के तो नहीं ही जा पाऊँगा ......कल बस से चला जाऊंगा ......

उधेड़बुन में ही घर पहुँच कर माँ से सीधे बोला ----आज मेरे साथ चोट हो गई ..... और हेलेमेट भूल आने की बात बताई ...30 का हो गया है पर पता नहीं आज भी उसे लगता है माँ के पास उसकी सारी चोटों का मलहम होता है ........
"तू अब तक बड़ा नहीं हुआ  ".... माँ की झिड़की में भी प्यार ही नज़र आया उसे ....
खैर दूसरे दिन की सुबह हुई .... तय करके सोया था की बस से जाना है तो एक घंटा जल्दी निकला जाएगा ...मगर बहुत दिनों बाद माँ आई है , ... टिफिन बनाने के लिए हड़बड़ी न हो तो ये याद भी नहीं दिलाया कि जल्दी निकलना है .....वैसे भी  खूब सारी बची बातें माँ से बातें करते-करते उसकी यादों से खुरचन  निकालता है वो ...जिसमें उसका बचपन और पिता का स्नेह दबा रह गया है कहीं ...
खुद ही सोचा बस से नहीं तो कैब ही ले लेगा ...थोड़े पैसे लग जाएंगे मगर कौन बार-बार खुद के लिए लेता हू ,,,,,
कैब बुक करने लगा ...... माँ ने बात सुनी तो याद आया कि अरे! बस से जाना था .....तुरंत माँ को कह दिया कोई बात नहीं ॥पहुँच जाऊंगा

शहर से थोड़ी अलग, एक तरफ घर होने से कैब जल्दी मिलती नहीं और कोई साधन तो खैर ही समझो कि कभी मिला हो ......  पर आज तो बहुत अनोखा अनुभव हुआ ...मोबाईल एप्प पर गूगल में कैब घर के पास ही दिखा रहा था , फोन मिलाया तो ड्राईवर बोला -सर, मैं दूर हूँ .... उधर नहीं आयेगा ...
- अरे! कैसे नहीं आयेगा, तुम्हें तो मेरे अपार्टमेंट के नीचे ही दिखा रहा है ?
- नहीं सर ,कुछ गड़बड़ होगा, मैं तो...... नहीं आ सकता
थोड़ी बहस के बाद  फोन काट दिया उसने ....बड़बड़ाते हुए - आजकल बहुत स्मार्ट समझते हैं लोग .खुद को ...साफ झूठ बोल रहा है .... दूसरी देखता हू
अब माँ के माथे पर भी चिंता कि लकीरें दिखने लगी थी ......वापस हेलमेट हाथ में लेकर आयेगा बस से ..... भूल मत जाना फिर .... रास्ते में न छूट जाए ....
....हाँ ,हाँ कहते तुरंत बोला-.... मैं निकलता हूँ नीचे से ही कुछ मिल जाएगा ॥आगे जाकर कैब मिल जाएगी ....और टिफिन हाथ में उठाए निकला गया ....

आधे घंटे में ही ऑफिस पहुँच कर फोन आ गया - मैं पहुँच गया .....
-अभी पहुंचा ? कैब मिल गई थी ?... माँ थी दूसरी ओर तो सवाल भी साथ ही थे ....-
हाँ ,हाँ ,पहले थोड़ी दूर तक लिफ्ट ले ली थी ....फिर सड़क से कैब .... फिर भी आधे घंटे में पहुँच गया ....रखता हूं
..
दिन खतम करती रही माँ ...कभी अंदर कभी बाहर .... कभी पार्किंग तक ..... जानती थी आना भी तो बस से ही है उसे तो देर हो ही जाएगी .....

आया ...... हेलमेट जगह पर रखा ॥कपड़े बदले ...और इधर माँ के सवाल तैयार - - टिफिन कितने बजे खाया ? .... भरता कैसा बना था बैंगन का? और करेले की सब्जी में नमक ज्यादा तो नहीं लगा ..... उपवास चल रहे हैं न! तो चख नहीं सकती ......

अब वो फ्रेश होकर माँ के सामने मुसकुराते हुए खड़ा था ...
नज़र मिलते ही माँ ने पूछा - क्या हुआ ?
- नहीं ..कुछ नहीं ......पर .आज तो बहुत बड़ी चोट हो गई मेरे साथ ...
- अरे! ,अब क्या हुआ ? मिटींग थी न आज भी ...
- हाँ, वो तो सब ठीक रही .... मगर मैं  जिस कैब में गया था न!, आज मेरा टिफिन उसमें ही छूट गया ....
- हैं ???? ... क्या करता है तू? ....... कहाँ ध्यान रहता है?.... मोबाईल पर बात करते हुए निकल लिया होगा उतर कर ... अब ?
- कोई नहीं ........ बात हो गई मेरी .......
-किससे?
- मुसकुराते हुए - लंच टाईम में खोजने लगा अपना टिफिन ..... मिल ही नहीं रहा था और याद ही नहीं आ रहा था कहाँ रख दिया
होगा
-फिर ?
- याद आया ... फोन किया कैब वाले को ...... उठाते ही बोला - सर , आपका टिफिन छूट गया न !... हां कहा मैंने ..... आगे बोला - मैं आते रहता हू उस तरफ ..... आपको फोन करूंगा  ...... , मैंने कहा ठीक है ... मगर खाना खा लेना ,उसमें करेले की सब्जी और बैगन का भरता है ..... वो बोला-  मैंने तो अपना खा लिया सर .....
-फिर ?
- फिर मैंने उसको कह दिया की -देखना.....! किसी और को खिला देना .... उसने हाँ बोला ... बस !
-फिर ?.... तूने खाया या नहीं ?
- खा लिया न, वहीं ऑफिस में ...
- अब गया टिफिन .... दूसरा लेना होगा ...वो कोई लाकर थोड़ी देगा... ... उसे क्या पड़ी है ......
- नहीं मेरी माँ .... मुझे विश्वास है, वो लाएगा
- भला क्यों/
- इसलिए की मैंने उसके साथ जैसा व्यवहार किया उस पर मुझे विश्वास है ....
-क्या किया था?
- जब मैंने बुक करने के लिए फोन किया था ,तब उसने कहा था मैं नाश्ता कर रहा हूँ सर , आता हूँ .....मैंने ठीक कहा ॥और खुद ही उस तक पहुँच गया .... तब वो नाश्ता कर रहा था ...... बोला सर ...... बस !...दो मिनट रूकेंगे क्या ? .... मैंने उसे कहा--- हाँ आराम से ... ........हमारे यहाँ खाना खाने के लिए/के समय  किसी को टोका नहीं जाता .... आदमी काम करता ही किसलिए है फिर .....
... और मैंने इंतजार किया ...... वो खुश हो गया ..... मुझे भी अच्छा लगा था.....

अब ...माँ की बारी थी मुस्कुराने की ...... विश्वास का जो बीज सीख के साथ बोया था ...... उसमें कोंपलें फूट आई थी ......

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आपको क्या लगता है ? टिफिन वापस मिलेगा .... :-) 

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