Saturday, April 1, 2017

आ लगा किनारा

मेरे गाँव की नदी
सूख गई मेरे देखते-देखते
जाती थी माँ जहाँ-
कपडे का गट्ठर सिर पर रख
कपडे धोने
और बताया करती थी हमें-
बुआ के साथ की गपशप और किस्से

मैंने देखा था नदी को
गणगौर पर्व में और
संजा पर्व में -
जब विदा करती थी उसे
गले लगा -उसी नदी में

मेरी बेटी सिर्फ जानती है
कि मैं विदा किया करती थी
गणगौर और संजा

लेकिन उसकी बेटी?
अपनी "मायरा"?
सुनेगी कहानियों में-
गणगौर,संजा,नदी और नानी के किस्से!!!

8 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 03 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

'एकलव्य' said...

बहुत सुंदर ! सत्यता के पट खोलती। धन्यवाद

तरूण कुमार said...

सुन्दर शब्द रचना

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर.......
वाह!!!
मेरे गाँव की नदी सूख गयी...
लाजवाब
http://eknayisochblog.blogspot.in

दिगम्बर नासवा said...

ये जिम्मेवारी हमारी है इनको बचा के रखने की जो हम नहीं कर पा रहे ... अच्छी रचना ...

Onkar said...

यथार्थ का चित्रण करती रचना

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर.......