बचपन की बात है,काका के यहाँ जाती थी तो वे क्लब के स्विमिंग पूल ले जाते तब बहुत डर लगता बाहर से देख देख मन में एक इच्छा ने घर कर लिया कि कभी मौका मिला तो सीखूँगी ...
समय बीता .... वार्डन रहते छुट्टी के दिन होस्टल के बच्चे स्विमिंग करते और मैं बाहर से सिर्फ ड्यूटी देती तैरना न आते हुए भी ☺
स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर बनी .... जब स्विमिंग टीचर छुट्टी करती तो मेरा अरेजमेंट लग जाता ... और क्लास लेना पड़ती ,डर लगता मगर बाहर से नियंत्रण रखती और बच्चों की क्लास मिस न होती,बच्चे खुश और मै डरी हुई ....
एक बार गर्मी की छुट्टियों में स्विमिंग केम्प लगा स्कूल में ,जो कोच थी उनके पिताजी का अचानक देहांत हो गया,,जिम्मेदारी मुझ पर आ गई ,तब तक थोड़ा हाथ पैर चलाना सीख लिया था मैंने..... करीब एक हफ्ते पानी में उतर कर सिर्फ बच्चों को पकड़ पकड़ सिखाया पूल में पानी थोड़ा कम रखवाया और दो हेल्पर पूल साइड खड़े रहते ,बहुत बड़ा रिस्क लिया पर सिखाया ,खुद तब भी ठीक से नहीं आती थी। 😢
एक बार गर्मी की छुट्टियों में स्विमिंग केम्प लगा स्कूल में ,जो कोच थी उनके पिताजी का अचानक देहांत हो गया,,जिम्मेदारी मुझ पर आ गई ,तब तक थोड़ा हाथ पैर चलाना सीख लिया था मैंने..... करीब एक हफ्ते पानी में उतर कर सिर्फ बच्चों को पकड़ पकड़ सिखाया पूल में पानी थोड़ा कम रखवाया और दो हेल्पर पूल साइड खड़े रहते ,बहुत बड़ा रिस्क लिया पर सिखाया ,खुद तब भी ठीक से नहीं आती थी। 😢
कभी सोचा न था अब स्विमिंग सीखूँगी.,...पिछले वर्ष वत्सल के यहां बंगलौर आई तो ये मौका हाथ लगा।
6 comments:
sach me sikhne ki koi umr nahi hoti
शुभकामनाएं. वाकई सीखने की कोई उम्र नहीं होती है।
बहुत सही कहा आपने.
रामराम
और क्या! सीखना तो जीवन भर चलता है और सचमुच मन से चाहो तो अनुकूल परिस्थितियाँ भी बन जाती हैं.
वाकई सीखने का जज्बा हो तो उम्र आड़े नहीं आती
बिल्कुल सही
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