Saturday, December 19, 2015

बच्ची

एक बच्ची का हँसना
एक बच्ची का रूठना
एक बच्ची का चहकना
एक बच्ची का खिलखिलाना
एक बच्ची का नाचना
एक बच्ची का थिरकना
एक बच्ची का ठुमकना
एक बच्ची का मुस्कुराना
एक बच्ची का उठना
एक बच्ची का चलना
एक बच्ची का खेलना
एक बच्ची का संभलना
देखा है कभी तुमने?

एक बच्ची का रोना
एक बच्ची का घुटना
एक बच्ची का तड़पना
एक बच्ची का सिसकना
एक बच्ची का खोना
एक बच्ची का टूटना
एक बच्ची का बिछड़ना
एक बच्ची का मचलना
एक बच्ची का बचना
एक बच्ची का मरना
एक बच्ची का गिरना
एक बच्ची का बिगड़ना
आखिर चाहते क्या हो?

Friday, December 18, 2015

कबूतरों को उड़ाने से क्या ?

चलते-चलते   नामक ब्लॉग लिखते हैं केवलराम ....और ब्लॉग पर क्या-क्या लिखते हैं ये आप वहीं जाकर पढ़े तो बेहतर जान पाएंगे

ये पोस्ट बहुत पहले रिकार्ड की थी ..आज इसे आपको सुनने के लिए यहाँ लाई हूँ ...

Tuesday, December 15, 2015

मैं हूँ न!




मैं तुम्हें यहाँ लाई थी 
मेरी बिटिया 
मेरी लाड़ो, 
मुझे लगता था 
इस घुटन भरी दुनिया के 
कुछ बाशिन्दों को 
जीने की वजह देने से 
उनके चेहरे भी मुस्कुरा सकते हैं 
तुम्हारी मुस्कान से 
पर मैं शायद गलत थी 
ये दुनिया सिर्फ़ घुटन भरी ही नहीं है 
दहशत भरी भी है 
जहाँ साँस लेना मुश्किल है 
तुम सी तितली का..... 
नोंच कर कली को 
फ़ेंक देते हैं यहाँ दरिंदे
फूलों की खुशबू से 
उनका कुछ लेना-देना नहीं 
मैं नहीं चाहती 
तुम्हारी मुस्कान खोना 
और किसी दरिन्दे द्वारा
तुम्हारे इन्द्र धनुषी परों का कतरा जाना....
पर तुम डरो नहीं ............





मैं हूँ न!

खींच लूँंगी उनके प्राण ...
ताकि हो जाए
उसी क्षण मौत उन दरिन्दों की
जिस क्षण उनके मन में
ये विचार आए ....

जिससे -
हर कली खिले,महके 
और मुस्कुरा पाए ....
और दुनिया में
"नानी की बेटी" कहलाए 







Sunday, December 13, 2015

मधुर याद







रात के उन लम्हों की बात बताउँ

जिनमें मौन ही मैं सब बोल गई...



एक-एक उलझन जो मन में थी 

तेरे आगे सुलझाकर कर खोल गई...



झंकॄत हो मन .गया थिरक-थिरक

सिहरन हुई और देह भी डोल गई...



साँसों की सरगम पे ताल मिली जब

मधुयामिनी मन में मधुरस घोल गई..


-अर्चना

Friday, December 11, 2015

जब मैं बड़ी हो जाउंगी ,तब मेरे पापा आएंगे

चार -पाँच दिन पहले एक सड़क हादसे में एक परिवार के मुखिया की मॄत्यु हो गई ,नेज गति के डम्पर से टकरा गई थी उनकी कार ........  उनकी पत्नी,पिता और दो बेटियाँ भी साथ थे .. .पत्नी के पैर में फ़्रेक्चर है ...पिता अब तक आई सी यू में है .(माँ का पहले ही देहान्त हो चुका है)... बड़ी बेटी जो कि मेरी स्कूल में के.जी. वन की विद्यार्थी है .....
मैं और हमारी वाइस प्रिन्सिपल मेडम कल उनके घर गए थे  .... 
बहुत दुखद होता है ऐसा समय ...घर पर बडे भाई मिले .....पता चला कि पिता को अभी बताया नहीं है कि बेटे का देहान्त हो गया है ..... पत्नी कभी बदहवास सी हो रो पड़ती -कभी चुप सी शून्य में ताकती ...देखा नहीं जा रहा था ..न कुछ कहते बन रहा था ...... छोटी बेटी दो माह की है और अपनी मामी की गोदी में बिलख रही थी .... पत्नी का मायका भी यहीं होने से पूरा परिवार साथ था.....
जितनी भी देर मैं रही एक भी शब्द न बोल सकी .... सांत्वना का ...:-( ......जैसे किसी ने मुँह सिल दिया हो मेरा ....
शायद मेरा अतीत मेरे सामने आ ठिठका- सा खड़ा हो गया था और मैं उसे देख अवाक थी! ....
चूँकि उस परिवार के सभी बच्चे मेरी ही स्कूल में पढ़ते हैं, वाइस प्रिन्सिपल मेडम ने ढाढस बंधाते हुए कहा कि जो होना था हो गया ,हमारे हाथ में कुछ नहीं होता ... आप अपना ध्यान रखें और बच्चों को स्कूल भेजें ,....
उन्होंने हामी भरी कि बड़े बच्चों के साथ ये बच्ची भी चली जायेगी ,इसलिये भेज देंगे ...थोड़ा सबके लिए ठीक होगा ....
आज बच्ची स्कूल आई थी .... अपनी क्लास टीचर से बताया कि मेरी नानी ने कहा है -
"जब मैं बड़ी हो जाउंगी ,तब मेरे पापा आएंगे".............  

सब कुछ जानते हुए भी बच्चों से झूठ कहना होता है ..... मालूम है कि बच्ची समय के साथ संभल जायेगी ...लेकिन समय का क्या ठिकाना ! .... कभी फिर से धोखा दे जायेगा .... ये डर जिन्दगी भर हर आती-जाती साँस के साथ लगा रहता है .....
और मैं जानती हूँ -परिवार एक पीढ़ी पिछड़ जाता है विकास दर में ...... 

Sunday, December 6, 2015

अनवरत चलने वाली कहानी का खूबसूरत पन्ना

 जब मैंने स्कूल में कार्य करना शुरू किया उस समय मुझे पता नहीं था - मैं किस तरह कार्य करूँगी ... परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बन गई थी कि मेरे सामने आगे जीवन चलाना और साथ दो बच्चों का भरण-पोषण करना एक चुनौती था ....
बात है सन १९९८ अप्रेल की ...तब बेटा सातवीं में और बेटी चौथी की परिक्षा दे रहे थे .... बेटा साईकिल से स्कूल जाता था अपने दो-तीन दोस्तों के साथ ...एक दिन वापस लौटते हुए अपने एक पिछड़े साथी को मुड़कर देखने के चक्कर में सामने आए पत्थर से टकरा कर ऐसे गिरा कि सामने के दो दाँत टूट गए ....
घर आकर जैसे ही सबको पता चला सब बहुत चिंतित हो गए ..कारण ये कि सब भुक्तभोगी थे ....मैं खुद खेलते हुए छठी कक्षा में ही तुड़वा चुकी थी अपने दो दाँत ....बिलकुल सेम -टू- सेम और तब शिरूआती लापरवाही की वजह से पस पड़ गया था ....

खैर ! तय किया कि परिक्षा खतम होते ही इन्दौर जाकर बेहतर इलाज करवाया जाय और तब तक कुछ दिन सिर्फ़ तरल खाना और साफ़ सफ़ाई का खयाल रखा जाए .....

इन्दौर आए इलाज के लिए ...साथ ही सोचा कि बच्चों की बेहतर शिक्षा की खातिर जो कि व्यवधान आने से गड़बड़ा गई थी उन्हें फिर से सी.बी.एस.ई. स्कूल में भेजा जाए और जरूरत पडे तो बेटे को होस्टल में रखा जाए ....
मेरी सहेली की मदद से इस स्कूल का पता लगा ..जो शहर से १३ किलोमीटर दूर था उस समय ....सहेली और भानजे के साथ स्कूल गए ...होस्टल देखा और प्रिंसिपल मेडम से बात की एडमिशन के लिए ....  उन्होंने सारी बातें जानने के बाद ऑफ़र दिया - कि अगर चाहो तो वार्डन का जॉब ले सकती हो जिससे सिर्फ़ लड़कों का होस्टल होने के बाद भी तुम अपने साथ लड़की को रख सकती हो .... रहना ,खाना और पढ़ाई ....मेरे सामने ये तीन समस्याएं ही मुँह उठाए खड़ी थी ....फिर भी कभी घर से बाहर निकल कर कहीं काम नहीं किया था नौ साल घर ही संभाला था ....और कुछ सोचा भी नहीं .... कोई निर्णय पिता से पूछे बिना कभी नहीं लिया था ,तुरंत हाँ न कह सकी ...मैंने जबाब दिया- पिताजी से पूछ कर बता पाउँगी ....
उन्होंने ८-१५ दिन का समय दिया ... मैंने फोन से पिताजी को बताते हुए पूछा- क्या कहूँ ? ...
जबाब मिला - वे कोई बाँध कर तो रख नहीं लेंगे , तुम्हारा मन कहे तो करके देख लो ,अच्छा न लगे तो फिर घर आ जाना ! ...
बस! यहीं से शुरूआत हुई खुद निर्णय लेने की और हिम्मत आई कि-अपनी इच्छा के बगैर तो कोई कुछ करवा नहीं सकता ....
मैंने हाँ कहा ...मुझे तारीख मिली २२ जून १९९८ ....और पिताजी का देवलोक गमन हो गया २८ मई १९९८ ....

मैं आ गई स्कूल .... तय करके कि जो भी हो परिस्थियों का मुकाबला करना है ...

एक-एक करके सारे काम सीखती गई .... सभी शिक्षकों से पूछ-पूछकर .... सबसे ज्यादा सीखा नवीन रावत सर से जो फिजिकल एजूकेशन शिक्षक थे ....
 मेरे तीन साल वार्डन रहते होस्टल के बच्चों के साथ सारे खेल खेलती.... बाद में खेल शिक्षिका हुई ....

लेकिन स्कूल का कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ मेरी यादें न हों ..और कोई कार्य ऐसा नहीं जो मैंने किया न हो ...
कहने को खेल शिक्षिका मगर संगीत,आर्ट,रिसेप्शन,हिन्दी,..... सबका रोल निभाने मिला ....... यहाँ तक कि बच्चों के कपड़े भी धोए और उन्हें रोटी भी बनाकर खिलाई   .... सबसे सुखद रहा स्कूल में "बेस्ट टीचर" का पुरस्कार मिलना ...वो भी स्कूल के २५ वें वार्षिकोत्सव में

ये बहुत आसान लगा मुझे -आप भी कर सकते है --किजीये कुछ नया---हर दिन...

एक प्रयोग ये भी ---पहली बार किया है ,तकनिकी जानकारी बढने के बाद सुधार की गुंजाईश है.....अभी ये चलेगा न.....

Wednesday, December 2, 2015

अन्तिम दिन और एक गीत

2/12/1996........2/12/2015
19 साल...
पर उस दिन को ,उस पल को
भूलना आसान नही,
भुलाना भी क्यों?
और कैसे?
जबकि अंतिम सांस की आहट
और खड़खड़ाहट
गूंजती है अब भी
कानों में
और ये आँखे बंद
होकर भी नहीं होती
महसूसती हूँ
आज भी
अंतिम स्पर्श
...................
और
सुनाई देती है चीख
अंतिम मौन की....
......................
रात भर का साथ
और निर्जीव देह
एक नहीं दो ....

बस!
दिखाई देता है
जीवन यात्रा का
पूर्णविराम
.... जहाँ लिखा था-
ॐ नमो नारायणाय......
.........
वक्त के साथ
सफर जारी है मेरा
ॐ शांति शांति शांति...... -अर्चना वो भूली दासतां लो फिर याद आ गई ---

Thursday, November 26, 2015

गुड़िया, नानी और बाजार

कल स्कूल के लिए कुछ सामान खरीदने गई, वहाँ पिता बैठे थे कहा दस मिनट रूकना होगा बेटा आ रहा है ,वही फाईनल करेगा , वहीं एक गुडिया दिखी ,हाथ में माइक पकड़े..... गाने वाली और उसने बताया कि चलती भी है ... सुन्दर लगी, मायरा के लिए लेने का मन हुआ .दाम लिखा था ४८५ रूपए .मैंने दाम पूछा ,उन्होंने बताया १५० रूपये की ..
वहाँ दो छोटे बच्चे भी थे जो शायद उनके बेटे के बेटे थे ...बातचीत में पता चला कि वे स्कूल छोड़ चुके हैं चौथी पढ़ने के बाद .
कुछ देर में बेटा आ गया ...
भावताव करने के बाद स्कूल का सामान  ले लिया  , उससे कहा -बच्चे स्कूल नहीं जाते वो बोला -..उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता .......मगर उसी समय बच्चों ने हँसते हुए बोले ---ओ.ओ.ओ.ओ.ओ... आप ही बोलते हो क्या करेगा स्कूल जाके ..काम सीख
मैने गुड़िया दिखाने का कहा, बोला १८० रूपये की ... मैंने कहा अभी तो पिताजी ने १५० बताया ...बेटा उन पर खूब नाराज हुआ हमारे सामने ही उन्हें जोर से डाँटा ,बोला मालूम नहीं हो तो बोला मत करो ... हमने कहा भैया कोई बात नहीं हो गई होगी गलती ..मगर वो बोलते गया - जितने में ली उससे भी कम बताएंगे तो कमाएंगे क्या?
खैर ..हमने उसे चुप करा एक दूसरी गुड़िया ले ली .... फिर भी मन उस पर अटका था ...कहा यही दोगे १५० में ..बोला नहीं ..... जब हम चलने को हुए तो बोला १६० में लेना हो तो ले लीजिए ,इस बार मैंने मना किया कहा- एक तो ले चुकी अब रहने ही दो .... फिर १५० पर राजी हुआ मैंने कहा -चलाकर दिखाएंगे क्या?
वो बोला लेने का पक्का हो तो चालू करके दिखाएगा .... मेरे हाँ कहने पर दो नए पेकेट से चाईना सेल डाले और चलाकर दिखाई ,चली नहीं पर गा  रही थी -धूम मचा ले धूम मचा ले ! ... उसने वो पीस बदला दूसरी लाया ,इस बार गा भी रही थी ,चल भी रही थी .... मैंंने कहा- दे दो ...
उसने सेल निकाले... मैंने पूछा सेल ?
बोला ये तो चाईना सेल है ,नकली आप एवरेडी के डालियेगा ,तब इसकी स्पीड देखियेगा ... सेल इसके साथ नहीं देते हम .....खैर ! पिता वहीं चुपचाप बैठे थे ...
मुझे मायरा दिख रही थी ...मैंने गुडिया खरीद ली ...कल मायरा घर आने वाली थी तो बाज़ार से नोविनो के दो सेल भी लेकर आई ...
खुशी-खुशी मायरा के सामने पेकेट से सेल निकालकर उसमें लगाए और नीचे रखी ..
गुड़िया नही चली ...पर गा रही थी -धूम मचा ल्के ,धूम मचा ले धूम धूम धूम....

मैंने पेकेट पर दाम देखा लिखा था ८२ रूपए ....
कितना बदलाव आया है बाजार और व्यवहार में ..मैं सोच रही थी ..बेटे ने पिता से सीखा होगा ...

मायरा ५० वाली से ही बहुत खुश थी ..... :-)

Wednesday, November 25, 2015

टू, भगवान जी

कुछ लिखते नही बन  रहा ...
..ये चिट्ठी हाथ में आई एक पुराने पर्स को फेंकने के लिए खाली करते समय....सुनिल के एक्सीडेन्ट के बाद की चिट्ठी है बेटि ने लिखी है ..........तब मेरे बच्चों के मन में क्या चल रहा था ....इस चिट्ठी ने सब कुछ सहेज लिया......तब पल्लवी पहली और वत्सल चौथी कक्षा में होगा.....
सुनिल अन्कॉन्शस रहे करीब साढे तीन साल ... उस समय मेरे पास समय नहीं रहता था बच्चों के साथ बिताने के लिए ...
भगवान जी पर भरोसा !...
अब भी है ,मुझे भी ...










आज शादी की ३१ वीं सालगिरह पर ये उपहार आपके लिए .....

Thursday, November 19, 2015

हमारा पहला सेल्फ़ी .

बात है 1986 अक्तूबर की ....
वत्सल था 11 महीने का .... घूमने का बहुत शौक था तुम्हें ...वो भी परिवार के साथ .... पूरे 17 तीन का टूर प्लान किया था ,साउथ घूमने का ...बंगलौर,मैसूर,कन्याकुमारी,मद्रास,ऊटी,पक्षीतीर्थ,त्रिवेन्द्रम, ... बहुत से नाम तो अब याद भी नही आ रहे .... निकले थे आसनसोल से .... और अंत मे "जगन्नाथ पुरी होते हुए वापस आना था .....
पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना ..... आहा ! कितना आनंद दायक था ....
हर शहर पहुँच कर वहाँ रूकने के लिए होटल में सस्ता कमरा तलाशने के लिए तुम बाहर होकर आते मुझे सामान के साथ प्रतीक्षालय मे बैठाकर ....... जब तक वापस आते मैं वत्सल को गोद में लेकर इधर-उधर बोर्ड पढ़ने की कोशिश करती .... समझ तो कुछ आता नहीं था .... फिर आकर कहते चलो ..मिल गया कमरा ...मैं वत्सल और छोटा बेग लेती ..तुम बड़े बेग उठाते ...तुम आगे मैं पीछे .....कमरे पर पहुँच कर सबसे पहला काम तुम्हारा होता छोटा बत्ती वाला स्टोव  खोल बाथरूम  में ले जाकर घासलेट(केरोसिन) डालना और जलाकर देना ....तब तक मैं वत्सल को खेलने में लगा छोटा स्टील का पतीला निकाल पानी तैयार रखती फिर गरम करने को स्टोव पर चढ़ा पहले वत्सल  के लिए गिलास के मिल्क पाऊडर में गुनगुना पानी मिला दूध तैयार करके बचे पानी में के  शक्कर -चायपत्ती  मिला देती और दो-कप में मिल्क पाउडर निकाल तैयार रखती .... अपनी चाय छान कर वही पतीला धोकर नहाने का पानी वत्सल के लिए गरम करती ...उसे नहलाकर आपको दे देती टॉवेल में लपेट कर ... आप उसका बदन पोंछ पाऊडर -क्रीम लगाकर कपड़े पहनाते तब तक मेरा नहाना निपट जाता ..साथ ही वत्सल के कपड़े भी ....धुल जाते .... फटाफट वही पतीला फिर पानी गरम करता और इस बार उसमें घर से तैयार मिक्स बनाकर लाई उपमा डालने के लिए ....
आपकी बारी नहाने की .... तब तक नाश्ता तैयार...वत्सल के लिए टिफ़िन रखती .... हम वहीं खा लेते ....
मैं बेग बन्द करने की तैयारी करती और आप स्टोव को वापस फोल्ड करने की ....
मजा तब आता जब स्टोव बन्द करते तो केरोसिन की गन्ध फ़ैलती ... हम परफ़्यूम खोलकर उसे उडाते  ..... और होटल का कर्मचारी पूछने आता ....

खैर ... रास्ते में कई साथी मिल गए थे .... खास कर तीन परिवार
एक केरल का नव विवाहित जोड़ा ..दूसरे बंगाल से ,जिनका कोई बच्चा शादी के कई दिन बाद भी नहीं था ...तीसरे उडीसा से, जो अपने डेढ़ साल के बच्चे को नानी के पास छोड़ आए थे .... वत्सल को पूरे समय संभालते रहते ..... हम कई शहर साथ घूमें .....लेकिन तरीका ये होता कि एक शहर से दूसरे शहर साथ एक ही बस से रात के सफ़र का टिकट लेते कोई एक ही जाकर ...फिर रूकते भी एक ही रूम लेकर ..सबका सामान उसमें रख देते बारी-बारी नहाकर तैयार होते ,नाश्ता साथ करते ...और अपनी -अपनी पसन्द के अनुसार घूमते दिन भर ...शाम को इकठ्ठे होने का समय और स्थान तय करके फिर एक जगह मिलते ...सामान उठाते और अगली जगह निकल पड़ते ...
ऊटी में सब अलग जगह रूके थे ...  .... सब तिरूपति में मिले थे शायद ....
ये ऊटी के किसी होटल की खिड़की में लिया फोटो है ...., पुराने केमरे से ..अपना पहला सेल्फ़ी .... १९८६ ,अक्टूबर माह में

Saturday, November 7, 2015

स्याह साये




                                                           कितना अजीब सा बंधन है इनसे मेरा 

इन स्याह सायों ने बहुत रूलाया मुझको 


उजाले के आते ही मेरे साथ चले ये सदा 

घटते -बढ़ते हुए सदा ही झुलाया मुझको 


सदा साथ देने का वादा किया था मुझसे 

तो अंधेरे में अपने संग सुलाया मुझको 
-अर्चना

रिश्ते बनते हैं निभाने से

आज मन हुआ है उन मुलाकातों को अंकित करने का जो हुई अंतर्जाल की दोस्ती के बाद ...
जब ब्लॉग लिखना शुरू हुआ तो लोगों से परिचय बढ़ने लगा.....बातचीत होने लगी ...बहुत ब्लॉगरों से चैट पर समस्याएँ साझा की और हल निकाले .....पर मुलाक़ात शुरू हुई संजय कुमार चौरसिया जी से जिनकी एक ब्लॉगपोस्ट का पॉडकास्ट बनाया था ....और वे ग्वालियर से इंदौर किसी काम के सिलसिले में आए थे....
कुछ ही दिन बाद स्कूल की ओर से ग्वालियर जाना हुआ,वहाँ वे अपने घर ले गए....पत्नी गार्गी और बच्चों से मिलवाया ...गार्गी ने खूब खिलाया नाश्ता ....ये गार्गी दीपक मशाल की बहन है...

फिर एक दिन ब्लॉगर ताऊ जी के  बेटे ने शाम को दरवाजे पर दस्तक दी.....खुलने पर हाथों में फूलों का गुच्छा और मिठाई लिए संदेसा सुनाया - आपके मित्र समीर लाल जी ने भिजवाया है ....जन्मदिन था उस दिन मेरा......सालों बाद किसी ने फूल भिजवाकर बधाई पहुंचाई थी.....रचना के मार्फ़त जानता है पूरा परिवार मेरा समीर जी को 

ये भी पता चला की ताऊ जी ने इंदौरी स्वाद की खातिर केक न भिजवाकर काजू कतली भेजी थी.....हाँ तो मुलाकात तो भरत से हुई....




फिर एक दिन गिरीश बिल्लोरे जी सपरिवार पधारे.....और साथ आई थी उनकी बुआ जी (मासी जी,भूल रही हूँ) .. बड़ी खुश थी ये जानकर की कम्प्यूटर पर ऐसी दोस्ती भी होती है..उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि पहली बार मिल रहे हैं .


फिर रायपुर यात्रा हुई ....ललित शर्मा जी  के सौंजन्य से ......यहाँ मुलाकात हुई वीर जी ,संजीव जी,अवधिया जी,अशोक जी, स्वराज करूण जी,अनुज और राहुल सिंग जी से राहुल जी के घर बैठकी में......
.

रीवा जाना हुआ तो मिली सादी सी -सीमा सदा 

फिर पटना यात्रा में मिला अनुभवप्रिय 








 फिर आया दीपक मशाल...मेरे घर ....एक पूरा दिन



फिर लखनऊ ट्रिप पर मिले सपत्नीक रवि रतलामी जी....संजय भास्कर से बहुत पहले से बात होती रही थी यहां वो मिलने आया था.....



                                     

गिरिज पंकज जी और रूपचन्द्र शास्त्री जी ने देखते ही पहचान लिया था ... 

यहीं इस्मत जी सबसे घूम घूम मुलाक़ात कर रही थी वे मिली...

..शेफाली पांडे बगल में ही बैठी थी..... बाकि लोग बाद में दोस्त बने ...और फेसबुक पर दोस्ती हुई 
शिखा वार्श्णेय रूस की स्मृतियों में ले गई साथ .... 
वीर जी के साथ शिवम भी आकार मिले ... 

लेकिन उदयवीर जी ने पॉडकास्ट का जिक्र किया और उनकी आवाज में गीत भी सुनाया था ...

और रमा द्विवेदी जी भी मिली -

रविन्द्र प्रभात जी ने तो आयोजन ही रखा था.....गेस्ट हाउस में मिली थी सुनीता शानू जी खाने पर...अविनाश वाचस्पति और फोटोग्राफर की भूमिका में संतोष  त्रिवेदी जी ...

छोटा सा फुर्तीला गोरा चिट्टा लड़का नीरज जाट भी यहीं मिला और सपत्नीक मुकेश सिन्हा भी .... 








 गिरिश पंकज जी और शैलेन्द्र भारतवासी के साथ बाद में फोटो लिया ...

फिर अचानक से मुलाक़ात हुई शिक्षक दिवस के एक संगीत प्रोग्राम में कविता वर्मा जी से ...

                                 

और फ्रेंडशिप डे के दिन उनके घर हो आई ... 



फिर वत्सल के यहां मैसूर गई थी .वहाँ से जाना था राँची.. अकेले.......
प्रवीण पाण्डेय जी और श्रद्धा जी ने जो आवभगत की बंगलौर में हमेशा याद रहेगी मुलाकात .रात रुकना था तो कराओके पर गाने भी गाए..... खूब हँसे.......पृथु और देवला के साथ ....





फिर शैलेश  भारतवासी और उनके दोस्तों क़े साथ रात  सराफा घूमना  ..वही मुहर्रम के दिन वे भी भूल न पाएंगे......और मैं भी.....
अगले ही दिन मुकेश तिवारी जी से मुलाकात हुई...जो इंदौर में ही रहते हैं पता  चला ,लखनऊ में वे भी थे...
फिर अनूप शुक्ल जी से मुलाक़ात हुई अचानक .......
और फिर एक मुलाक़ात हुई भिलाई में वीर जी से वे साथ लाए थे शरद कोकास जी को और संजीव तिवारी जी से भी दूसरी बार मिल रही थी ...और वीर जी से तीसरी बार 
फिर आई बंगलौर..... बॉटनिकल गार्डन में बुलाया शेखर सुमन को...वत्सल लेकर गया मुझे....दो चश्मिशों  के साथ खूब अच्छा लगा 
गिरिजा जी का फोन आया ....उनके घर जाकर मिली....मगर मन न भरा तो फिर एक दिन पूरा उनके साथ बिताया ....आलू की कचोरी खूब स्वादिष्ट बनाती हैं वे

                            

यहाँ से उड़कर गाँधीनगर में  सलिल भैया भाभी से मिल आई हूँ.....

                                       

 और आनन्द  गुणेश्वर से भी गांधीनगर में ही 


अब फिर बंगलौर में हूँ...
.आशीष श्रीवास्तव जी खाना बहुत अच्छा बनाते हैं प्रमाणित कर चुके हैं
रश्मि दी मुलाक़ात का सारांश बता ही चुकी हैं



विवेक रस्तोगी जी को हरी मिर्च की चटनी मैं खिला चुकी हूँ...
एक बात बताना भी जरूरी है यहां ....दिलीप तिवारी मैसूर में था ....तब मैंने उसके ब्लॉग से पॉडकास्ट बनाए थे ....उससे बातचीत में मैंने बताया था कि मेरी भतीजी वैदेही  का जन्मदिन है
और मेरा छोटा  भाई वहीं है.....भाई को नम्बर दिया,उन दोनों ने बात की,और अगले दिन दिलीप जन्मदिन की पार्टी  में परिवार से मिला......मैं नहीं मिली अभी ....
और कोई छूटा तो नहीं ...याद करके एडिट कर लूँगी....और हाँ सबकी लिंक भी तो लगानी  है

देखिए कहा था न किसी को भूली तो नहीं  ..और संध्या जी को ही भूल गई ...जबकि इनसे तो बात से भी पहले मुलाक़ात हुई थी.......और इन्होंने अपने घर ले जाकर खाना भी खिलाया था ......खुद बनाकर .......मेरे पोस्ट लिखने का उद्देश्य भी यही था कि मैं किसी को भूल न जाऊँ....संध्या जी से माफ़ी के साथ उनकी आभारी भी हूँ की उन्होंने याद दिलाया ...मैं बहुत शर्मिंदा भी हूँ....क्यों याद नहीं रहा......खाना खाकर भी भूल गई .....




तो  मान गए न ! अच्छे दिन आ गए मेरे........




Friday, October 30, 2015

मानो या न मानो ,पर ये सच है ,कसम से..

आपको विश्वास हो या न हो पर ये बिलकुल सच है ....ईश्वर से सच्चे मन से मांगो तो मुराद पूरी होती है ,जब तक उसके हाथ में है.....(मुझे लगता है ,कई बार उसके हाथ में भी नाही रहता कुछ )
.कई बार मुझे महसूस हुआ है की वो मेरी सुनता है .....पिछली बार कब सुना था ये फिर कभी बताउंगी पर आज बिलकुल आज की ही बात बताती हूँ.....

मेरा टैब रश्मिप्रभा दी के यहाँ ( 26 अक्तूबर को) उन्हें मायरा के वीडियो दिखाने के बाद बंद पड़ गया ,,बहुत से फोटो वीडियो ,ऑडियो सब उसमें बंद हो कर आराम फरमा रहे थे ..... मैं  लाचार ....एक दिन बहुत कोशिश की , न ,नहीं हुआ कुछ
अगले दिन चारजिंग पर लगा कर छोड़ दिया .... ... शाम वत्सल ने भी चेक कर देखा ....न ....कुछ नहीं ॥:-(

तीसरे दिन वत्सल ने ऑफर दिया - अब नया ले लो इसे हटाकर ..... सब एक में हो जाएगा ... मगर फोन अलग ही रहने दो तो आपको अच्छा रहेगा ..... सारे सेल वाले डील के लिए बाज़ार (साइट) तलाश करके पसंद भी किए सिलेक्ट भी कर लिया ...बस फाईनल ओके ही करना था ...पर आपण ठहरे वही किफ़ायती काम करने वाले .... मन में आया ---नहीं यार बहुत पैसे फालतू खर्च हो जाते हैं ..... चल जाएगा काम ....चल ही रहा है ...... कुछ और काम खोज लूँगी ..... फिर कुछ दिन रूक कर ले लेंगे .....
इस पर पोस्ट भी लिख दी... 



आज हो गई थी 29 अक्तूबर
मैं सुबह  पूजा करने बैठी तो पास ही चार्ज हो रहे टैब पर नज़र पड़ी..... दिल ने कहा- क्या यार -तुझे हुआ क्या है ? , कुछ पता चले तो इलाज हो ..... और सच्चे दिल से भगवान से कहा -इसे ठीक कर दो प्लीज ..... और एक बार ऑन करने के लिए बटन दबाया ====
ये क्या ! चमत्कार ..... चालू हो गया,स्क्रीन पर  lenova चमकने लगा ..... आंखे खुली रह गई ॥एक बार भगवान को देख रही थी ,एक बार टैब को .... ...
पहले पूजा की और फिर  ये फोटो उसी से ली  नई ब्लॉग पोस्ट लिखने को ...  ....

विश्वास और गहरा हुआ -ईश्वर है ,और वो सबके मन की सुनता है ....सुन ली -मेरे मन की 

Thursday, October 29, 2015

जन्मदिन

अब ले दे कर जो भी मौका मिलता है खुशियों को भूनने का तो भुना लेते हैं ---- माँ और बेटा ,कुल मिलाकर दो जने ...
लेकिन 
घर भर दिया 
और घर के साथ-साथ 
आप सबको भी शामिल कर लिया ....





....


इतने स्नेह और प्यार के लिए धन्यवाद !

चुहलबाजी

पहले मेरे पास नोकिया था छोटे स्क्रीन वाला .... व्हाट्सएप की जरूरत नही थी ...ब्लॉग और फेसबुक ,यूट्यूब सब ...घर पर डेस्कटॉप पर वापर लेती थी ...

इस बीच टैब भी ले लिया .....अब सब कुछ गतिमान हो गया था मगर मैंने बड़े आकार का होने के कारण फोन का इस्तेमाल न होने वाला लिया था .

फिर फोन में गड़बड़ी होनी शुरू हुई कभी  मुझे और कभी सामने वाले को सुनाई नहीं देता था .... सबसे ज्यादा मुश्किल तब आती थी जब माँ किसी से बात कह और सुन नहीं पाती थी उससे :-(

फिर बेटी ने उसका एक फोन दिया (उसके नया लेने पर बेकार पड़ा था :-)

... एक दिन व्हाट्सएप.... अपडेट की प्राबलम के कारण गायब हो गया टैब से ....अब टैब पर ब्लॉग ,मेल ,और फेसबुक चल रहे थे ...व्हाट्सएप्प पल्लवी वाले फोन में


उस पर फेसबुक छोड़ सब चल रहा था ...मगर ,,,, गांधीनगर में बिना वजह फोन और टैब दोनों बंद पड़ गए ........बंगलौर अकेले वापस आना था तो रचना से  एक नोकिया पुराना बच्चा उधार लिया ....अभी भी फोन उस पर सुनती हूँ ...

बंगलौर आने पर पल्लवी वाला फोन और टैब दोनों अपने आप स्वस्थ हो गए :-)

आश्चर्य तो मुझे भी हुआ ..पर अच्छा लगा बहुत ... :-)

पर लेपटॉप उपलब्ध  था तो टैब को आराम दिया हुआ था .....सिर्फ बाहर जाने में काम आता था .....
अब रश्मिप्रभा  दी को उनके यहाँ मायरा के वीडियो भी उसी पर दिखाए ....मगर  थक गया वो गया कोमा में ...... आज तीसरा दिन है ....

तो इस रामायण का सार ये की अब कुछ नया लेना है खुद के लिए ......
 बच्चों ने भी पुराना देने से साफ मना कर दिया है ...... :-) मुझे लगता है ...इतना भी जरूरी नहीं.....
फोन एक में
व्हाट्सएप एक में
और फेसबुक
ब्लॉग एक में ...... चल ही रहा है ...... :-)
आप क्या सजेस्ट करेंगे ..... दिवाली उपहार मेरे लिए ...
ध्यान रहे सबसे ज्यादा पॉडकास्ट का काम होना चाहिए ....

शुभ दिन !

Wednesday, October 28, 2015

.बैंगलोर आबाद हुआ .

मैं इतने अच्छे से व्यक्त नहीं कर सकती ,रश्मिप्रभा दी ( Rashmi Prabha...).. हाँ,लेकिन आठ घंटों की मेराथन मुलाक़ात यादगार रही ..... इतने दिनों से बंद झरने फूट पड़े इसमें ..... कितने गोते लगाए ये बताया नहीं जा सकता ..... और हाँ ...आईसक्रीम तो दिखाई दे रही है पर ...चाय तो एक-दो-तीन........ और नाश्ता खाना सब फ्री !!! सबको भी याद किया ....
Rashmi Prabha added 3 new photos.
वर्षों का अनदेखा,
तस्वीरों से जुड़ा रिश्ता
अनौपचारिक हो जाता है,
यह रूबरू मिलने के बाद ज्ञात होता है !
ज्ञात होता है -
हमने जो अपनी सोच के चादर बुने थे
वे अनमोल हुए या नहीं …
ऐसी ही एक आभासी दुनिया से उतरी आवाज़
वत्सल,पल्लवी की माँ
प्यारी सी मायरा की नानी
अद्भुत हौसलों की मिसाल
शालीनता के परिधान में
गजगामिनी सी अर्चना मुझे मिली
....
अतीत सुस्वप्न हो या दुःस्वप्न
जब गुजर जाता है
तो एक कहानी बनकर रह जाता है
हम अचंभित होकर सुनते हैं
पर दरअसल कुछ ही समय के लिए
उस बीच के काल से
हम अपना तारतम्य जोड़ लें
तो बहुत कुछ सीखने-समझने के लिए मिलता है

जिसकी कथा औरों ने कही
और जिसने अपनी कथा स्वयं कही
बहुत फर्क होता है
जिसे चाहकर भी हम सारांश नहीं बना सकते
!!!
हाँ सारांश होते हैं उसके बच्चे
उसके आभासी से भाषित होते रिश्ते
और चेहरे पर उग आये सुकून के विराम चिन्ह !
....
कल की मुलाकात का एक सारांश smile emoticon - अर्चना चावजी
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Comments
Vandana Gupta आहा smile emoticon
Mridula Pradhan आप दोनों की खिलखिलाहट यहाँ तक सुनायी पड़ रही है..एकदम निष्कलुष..
अर्चना चावजी सच में ...खूब हँसे साथ हम
Pallavi Saxena Arey waah... beautiful pics....like emoticon
Kajal Kumar अच्‍छा
Udan Tashtari बधाई
Rekha Srivastava बहुत अच्छे ।
सलिल वर्मा लीजिये दीदी! बस मुझसे ही मुलाक़ात बाकी है!
Anupama Agrawal Goyal What a beautiful, heart touching, insightful poem! Such happy faces!
गिरिजा कुलश्रेष्ठ वाह ..बैंगलोर आबाद हुआ . बधाई . काश मैं भी वहाँ होती .
UnlikeReply222 hrs