Saturday, December 31, 2011

लेखा-जोखा ..मेरे किये का...

जब मुड़ के देखा .....ये मिला ..........लेखा-जोखा मेरे किये का ......
......जिसमें शामिल है मेरे साथ मेरा परिवार ......



...क्या किया मैनें?...........अच्छा -बुरा सब यहीं है...
.....ये मेरे साथ जायेगा ....या यहीं रहेगा....पता नहीं ...
......पर अब जो करना है .....इससे सीख लेकर करना है ....
.......कब तक ?...नहीं पता ....तो............अभी तो कर लूँ ..:-)
 
......सभी को नये साल की बधाई व शुभकामनाएं मेरी और मेरे परिवार की ओर से ---

जनवरी       --- http://archanachaoji.blogspot.com/2011_01_01_archive.html
 फ़रवरी        --- http://archanachaoji.blogspot.com/2011_02_01_archive.html
 मार्च           ---  http://archanachaoji.blogspot.com/2011_03_01_archive.html
 अप्रेल          --- http://archanachaoji.blogspot.com/2011_04_01_archive.html
मई             ---  http://archanachaoji.blogspot.com/2011_05_01_archive.html
जून            ---  http://archanachaoji.blogspot.com/2011_06_01_archive.html
जुलाई        ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_07_01_archive.html
अगस्त      ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_08_01_archive.html
सितम्बर    ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_09_01_archive.html
अक्टूबर     ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_10_01_archive.html
नवम्बर     ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_11_01_archive.html
दिसम्बर    ---   http://archanachaoji.blogspot.com/2011_12_01_archive.html

Tuesday, December 27, 2011

आओ जश्न का माहौल बनाएं


आओ कि  जश्न  का माहौल बनाएं ...
झूमें ,नाचें ,खुशियाँ मनाएं..

तो ......करिये उलटी गिनती शुरू.......देखिये एक विडियो कपिल श्रीवास्तव के सौंजन्य से ....
अच्छा न लगे तो बताईयेगा ....




Tuesday, December 20, 2011

खुद से मुलाकात..

कल मैं खुद ही खुद से मिली,
खुद को समझाया,
खुद को ही डाँटा,
खुद ही परेशान रही.
खुद से बातें की,
पर खुद को न बदल पाई,
कितनी मुश्किल है खुद से मुलाकात,
ये कल ही मैं जान पाई,
बहुत अच्छा लगा खुद से मिलकर,
लगा खुदा से मिल आई हूँ,
और अब मैं खुद ही खुद बने रहना चाहती हूँ ,
हे ईश्वर बस!..मुझे खुद ही बनकर जीने देना,
मैं खुद को नहीं बदल पाउँगी,
जब -जब मन करेगा तुझसे मिलने का
मैं खुद ही खुद में चली आउँगी......
तू मुझसे यूँ ही मिलते  रहना,
तभी खुद की तरह जीने के लिये..
तेरी बनाई दुनियाँ को मैं समझ पाउँगी...








Monday, December 19, 2011

मेरे दो अनमोल रतन ..

अरे कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला ......
 
देखो तो जरा ----वही हैं ये ..... 

Sunday, December 18, 2011

मौन का खाली घर देखा है ???

और जब सपने टूट जाते थे ,
और जरूरते रोती थी ,
तब सरकार सपनों की गिनती कर,
जरूरतों के हिसाब से कागज पर,
आंकडे भरती थी.......... मौन थी मै ओम जी की ये कविता पढकर........



 कई दिनों से लिखा नहीं क्यों ??आप भी मिस क़र रहें होंगे मेरी तरह...
 अब मौन न रहो...----ओम आर्य ...

 

Friday, December 16, 2011

प्रीत ....

तुम छलना नही छोड़ सकते
तो क्यों मैं छोड़ दूँ अपनी प्रीत  ....

तुम चाहे जग को जीत लो..
पर मैं जाउंगी तुमको जीत...

Tuesday, December 13, 2011

तू कितनी अच्छी है ...

माँ की सीख ---



आज कल माँ का साथ नसीब हो रहा है, अपने अनुभव से कुछ बाते बताती हैं वे --


---खुद कभी ऐसा कोई काम न करें जिससे किसी का भी दिल आहत हो ,या उसे अपनी बात बुरी लगे।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय .....

--- इसलिये कभी भी किसी की बुराई मत करो या किसी की बुरी बातों का जिक्र मत करो।


साँई इतना दिजीए ,जामें कुटंब समाय ,
मैं भी भूखा ना रहूँ, पंथी न भूखा जाय ॥

--- इसलिये बहुत ज्यादा की चाह नहीं होनी चाहिये और हमेशा अपनी चादर के अन्दर ही अपने पैर रखना चाहिये ।

और भी बहुत ....


Saturday, December 10, 2011

अनलिखी ईबारत

ये कविता यूँ ही नहीं बनी ..... समीर लाल जी कि पोस्ट "जिंदा कविता" को पढ़ कर किसी अपने की कही बहुत सी बातें याद आ गई .....बहुत कुछ  याद आ गया ... लगा कोई मुझसे कह चुका है पहले ये सब....और अब मेरी बारी है कहने की ..तो "जिंदा कविता" पढ़कर अहसास हुआ अपने जिंदा होने का और  लिखी गई ये कविता ----


अपने जिंदा होने का अहसास कराती एक "जिंदा कविता"...
जिसकी खुशबू से महक उठता है एक मुरझाया गुलाब !
जिंदा कविता
जिसमें ईबारत नहीं होती... बस धड़कते हैं जज़बात,रंगीन खुशनुमा एहसास
देख लिया होगा कहीं छुपकर तुमने मुझे पढ़ते हुए ...
..................
तुम्हारे यहाँ न होने पर भी आती आहट तुम्हारे होने की,
सुन पाती हूँ वो धड़कन...
जानती हूँ अभी छुप गये होंगे कहीं...
और जो पलट कर न देखूंगी तो
बन्द कर दोगे आँखें मेरी पीछे से आकर
जब छुओगे नम पलकें मेरी तो खींच लोगे मुझे अपनी ओर..
और फ़िर शुरू होगा मौन
(अनकहा) वार्तालाप
कभी न खतम होने के लिए...
सिर्फ़ अहसास होंगे तुम्हारे और मेरे बीच
बिखेरते अपनी भीनी-भीनी खुशबू...
जिनसे महक उठता है एक मुरझाया गुलाब ..
 

और छा जायेगी फ़िर एक चुप्पी
 ..............

न कोई शिकवा न शिकायत...
और फ़िर वही दूरी.....
कुछ मेरी मजबूरी
और कुछ तुम्हारी मजबूरी ..










Wednesday, December 7, 2011

जीवन अकथ कहानी रे !!!

 आज एक कविता पद्म सिंह जी के ब्लॉग "ढिबरी" से ...

बिधना बड़ी सयानी रे
जीवन अकथ कहानी रे


तृषा भटकती पर्वत पर्वत
समुंद समाया पानी रे

दिन निकला दोपहर चढी
फिर आयी शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मैदेखूं
दुनिया आनी जानी रे

रूप नगर की गलियां छाने
यौवन की नादानी रे
अपना अंतस कभी न झांके
मरुथल ढूंढें पानी रे

जो डूबा वो पार हुआ
डूबा जो रहा किनारे पे
प्रीत प्यार की दुनिया की
ये कैसी अजब कहानी रे

मै सुख चाहूँ तुमसे प्रीतम
तुम सुख मुझसे
दोनों रीते दोनों प्यासे
आशा बड़ी दीवानी रे



तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वाही
नयनों में निर्झर पानी रे
..


इसे सुनना चाहें तो सुन सकते हैं यहाँ